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श्रीरामायणामृतम् भाग-६-श्रीराम-लक्ष्मण का जनकपुरी प्रस्थान व स्वयंवर वर्णन इत्यादि...

  सज्जनों! आप सभी के आशीर्वाद से मैंने पुनः रामायण लिखने का तुच्छ प्रयत्न किया है जिसे काव्य खण्डों में विभाजित कर यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ,आज के इस छठे प्रसंग में राम-लक्ष्मण का महर्षि विश्वामित्र संग जनकपुरी प्रस्थान,मार्ग में माता गंगे व उनके यशस्वी पूर्वजों का महर्षि द्वारा वर्णन तथा सीता-स्वयंवर व परशुराम जी के स्वयंवर सभा में आकर क्रोध करने के प्रसंग का दर्शन  जो कराने का प्रयत्न मैंने किया है। श्रीरामायणामृतम् भाग-५ अपने इस रामायण के भाग-६ को आधार देने के लिए जो कि बालकाण्ड ही है को आधार देने के लिए मैंने यथोचित दोहा छंद का प्रयोग कर सिय-राम के मिलन का वर्णन करने का भी प्रयत्न किया है। आशा करता हूँ श्रीराम व सभी देवी-देवता के आशीर्वाद के साथ आप सभी भी मेरे इस रामायण को अपना आशीर्वाद प्रदान करने के लिए अपनी पुनीत प्रतिक्रिया अवश्य प्रदान करेंगे। दोहा छंद विधान:-  यह एक अर्धसममात्रिक छंद है जो चार चरणों में पूर्ण होता है,यानि यहाँ हम ऐसा कह सकते हैं कि केवल चार चरणों में इस छंद में गूढ़ से गूढ़तम बात कही जा सकती है। इस छंद की लयबद्धता के लिए कल संयोजन का ध्यान रखना अ...

श्रीरामायणामृतम् भाग-६-श्रीराम-लक्ष्मण का जनकपुरी प्रस्थान व स्वयंवर वर्णन इत्यादि...

  सज्जनों! आप सभी के आशीर्वाद से मैंने पुनः रामायण लिखने का तुच्छ प्रयत्न किया है जिसे काव्य खण्डों में विभाजित कर यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ,आज के इस छठे प्रसंग में राम-लक्ष्मण का महर्षि विश्वामित्र संग जनकपुरी प्रस्थान,मार्ग में माता गंगे व उनके यशस्वी पूर्वजों का महर्षि द्वारा वर्णन तथा सीता-स्वयंवर व परशुराम जी के स्वयंवर सभा में आकर क्रोध करने के प्रसंग का दर्शन  जो कराने का प्रयत्न मैंने किया है। श्रीरामायणामृतम् भाग-५ अपने इस रामायण के भाग-६ को आधार देने के लिए जो कि बालकाण्ड ही है को आधार देने के लिए मैंने यथोचित दोहा छंद का प्रयोग कर सिय-राम के मिलन का वर्णन करने का भी प्रयत्न किया है। आशा करता हूँ श्रीराम व सभी देवी-देवता के आशीर्वाद के साथ आप सभी भी मेरे इस रामायण को अपना आशीर्वाद प्रदान करने के लिए अपनी पुनीत प्रतिक्रिया अवश्य प्रदान करेंगे। दोहा छंद विधान:-  यह एक अर्धसममात्रिक छंद है जो चार चरणों में पूर्ण होता है,यानि यहाँ हम ऐसा कह सकते हैं कि केवल चार चरणों में इस छंद में गूढ़ से गूढ़तम बात कही जा सकती है। इस छंद की लयबद्धता के लिए कल संयोजन का ध्यान रखना अ...

जीवन मथनी बीच में पिसता है संसार..

दोहा छंद एक अर्धसममात्रिक छंद है जो चार चरणों में पूर्ण होता है,यानि यहाँ हम ऐसा कह सकते हैं कि केवल चार चरणों में इस छंद में गूढ़ से गूढ़तम बात कही जा सकती है। इस छंद की लयबद्धता के लिए कल संयोजन का ध्यान रखना अनिवार्य होता है। सुन्दरतम कल संयोजन से यह सरस ,सुमधुर व मनोहारी बन जाती है 13-11 के इस विधान में कल संयोजन का ध्यान रखकर छंद विद्यार्थी इस सुन्दरतम छंद का अभ्यास कर सकते हैं। दोहे का प्रथम व तृतीय चरण विषम तथा द्वितीय व चतुर्थ चरण क्रमशः सम चरण कहलाता है। विषम चरणों की ग्यारहवीं मात्रा लघु होने से दोहे में सरसता लक्षित होती है। कल संयोजन से हमारा तात्पर्य मात्राओं का सुन्दरतम विभाजन से है:- कल परिचय- कलों के कुल तीन प्रकार हैं- 1- द्विकल, 2- त्रिकल, 3- चौकल 1- द्विकल - दो मत्राओं से बने शब्द या शब्द भाग को द्विकल कहते हैं। जैसे- अब, जब, की, पी, सी आदि। द्विकल= 1+1=2 मात्रा 2- त्रिकल- तीन मात्राओ के शब्द या शब्द भाग से मिलकर बने शब्द त्रिकल कहलाते हैं. जैसे- राम, काम, तथा, गया हुई आदि। त्रिकल= 1+1+1 = 1+2 = 2+1 प्रत्येक योग= कुल 3 मात्रा 3- चौकल- इसी परकार चार मात्राओ के शब्द य...