ठंड मार शीत बाण हाड़ को कँपा रही..स्वनाम जो जपा रही
चामर छंद जो कि पंद्रह वर्णों का एक वार्णिक छंद है,इसमें ठंड,शीत विषयक छोटी-सी सृजन पुनः आप सबों के समक्ष कठिन शब्दों के अर्थ सहित सादर प्रस्तुत है,आशा करता हूँ यह छंदमय प्रयत्न आपको अवश्यमय पसंद आएगा और गुनगुनाने को विवश कर देगा।यदि आपको तनिक भी ऐसी अनुभूति होती है,तो आपका प्यार,दुलार,आशीर्वाद अवश्यमेव चाहुँगा। चामर छंद का विधान निम्नवत है :- रगण जगण रगण जगण रगण २१ २१ २१ २१ २१ २१ २१२ ठंड मार शीत बाण हाड़ को कँपा रही। पाप क्या किया बता स्वनाम जो जपा रही ।। प्रीत मीत मानके न वैर भावना रखा। ठंड दंड ताड़ना अमानना नहीं लखा।। रोग भोग भी लिया न मौन भंग ही किया। वेग से प्रवेग से समीर क्यों बहा दिया।। प्राण घ्राण सर्प सा नहीं सुनो करो कभी। क्रोध का प्रमाण शोध ना करा मुझे अभी।। रार वार जो ठना विकल्प कल्प ही नहींं। ऊन चीर ओढ़के डरा नहींं डटा यहीं...

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