मधुशाला छंद में मेरी छोटी-सी कोशिश प्रस्तुत है।
इस छंद के विधान की यदि बात करूँ तो इसमें १६-१४ की मात्रा पर यति, दो-दो चरण तुकांत तथा तीसरा चरण अतुकांत
होता है,प्रस्तुत है इस छंद में मेरा एक प्रयत्न:-
जीवन क्या है एक छलावा, सब जिसमें ही छल जाते।
माया के बंधन में फँसकर,कागज़ सम सब गल जाते।।
मान यहाँ जो भी पाता है,होता बदनाम वही भी,
नहीं सफल वो हो पाते जो,यश-अपयश में भरमाते।।१
नहीं कभी जो फल की सोचें,कर्म यहाँ बस करते हैं।
असाध्य लक्ष्य उनके न होते,वही सफलता वरते हैं।
विकल्प पथिक अगर तुम चाहो,अटल संकल्प रखना है।
बस कहने से कुछ ना होगा,हामी ही जो भरते हैं।२
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