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ठंड मार शीत बाण हाड़ को कँपा रही..स्वनाम जो जपा रही

  चामर छंद जो कि पंद्रह वर्णों का एक वार्णिक छंद है,इसमें ठंड,शीत विषयक छोटी-सी सृजन पुनः आप सबों के समक्ष कठिन शब्दों के अर्थ सहित सादर प्रस्तुत है,आशा करता हूँ यह छंदमय प्रयत्न आपको अवश्यमय पसंद आएगा और गुनगुनाने को विवश कर देगा।यदि आपको तनिक भी ऐसी अनुभूति होती है,तो आपका प्यार,दुलार,आशीर्वाद अवश्यमेव चाहुँगा। चामर छंद का विधान निम्नवत है :-           रगण जगण रगण जगण रगण              २१  २१  २१ २१ २१ २१ २१२                  ठंड मार शीत बाण हाड़ को कँपा रही।   पाप क्या किया बता स्वनाम जो जपा रही ।।    प्रीत मीत मानके न वैर भावना रखा।    ठंड दंड ताड़ना अमानना नहीं लखा।।   रोग भोग भी लिया न मौन भंग ही किया।    वेग से प्रवेग से समीर क्यों बहा दिया।।   प्राण घ्राण सर्प सा नहीं सुनो करो कभी।   क्रोध का प्रमाण शोध ना करा मुझे अभी।।  रार वार जो ठना विकल्प कल्प ही नहींं।    ऊन चीर ओढ़के डरा नहींं डटा यहीं...

कर्महीन वह होता हरदम..भाग्य भरोसे बस बैठा



आदरणीय बासुदेव अग्रवाल 'नमन' जी का ३२ मात्रिक छंद विधान को हम नवांकुरों से साझा करने के लिए हृदय तल से अग्रिम आभार।आदरणीय के मार्गदर्शनानुसार छंद विधान व नीचे उस पर मेरे द्वारा सृजित रचना आप सभी साहित्य प्रेमियों के लिए सादर प्रस्तुत है:-

चौपाई के द्विगुणित रूप वाला यह चतुष्पदी(चार पदों वाला)सममात्रिक छंद में १६ मात्राओं के चरणों का विधान चौपाई वाला ही होता है। यह छंद राधेश्यामी छंद से अलग होता है क्योंकि राधेश्यामी छंद के १६ मात्रिक चरण का प्रारम्भ त्रिकल से नहीं हो सकता,उसमें प्रारम्भ में द्विकल होना आवश्यक है।जबकि ३२ मात्रिक छंद में ऐसी बाध्यता नहीं है।

छंद विधान पर प्रस्तुत त्वरित सृजन सादर प्रस्तुत है :-


Karmahin vah hota hardam jo bhagya bharose bas baitha



नवल वर्ष का कर लें स्वागत,पर सुनें पुराना मत भूलें।

जो भी गलती तभी हुई थी,सुधार करें अरु सफल हो लें।।

आज शिखर तक जो भी पहुँचे,सीखे वो बीती बातों से।

जो कर्म पथिक ना अभी थके,ऊर्जा वो पाए रातों से।।

सुनें वर्ष तो आए-जाए,प्रश्न यही बस क्या हम जाने।

उत्सव को बस वर्ष नहीं है,उत्तम हम गलती पहिचानें।।

बार-बार गलती दुहराना,सुनें ना होती अक्लमंदी।

सुधार यदि हम गलती को लें,तब नहीं सफलता पाबंदी।।

मनुज श्रेष्ठ वो कहलाता है,नहीं सीखना जिसने छोड़ा।

गवाह यह इतिहास रहा है,तूफा़नों को उसने मोड़ा।।

कर्महीन वह होता हरदम,जो भाग्य भरोसे बस बैठा।

भूले जिसने सोचा ऐसा,स्वप्न भाग्य ने उसके ऐंठा।।

भारत भूषण पाठक'देवांश'🙏🌹🙏

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टिप्पणियाँ

Anmol rajput ने कहा…
मेरे अध्यापक भारत भूषण पाठक महोदय द्वारा रचित नव वर्ष पर काविता वास्तव में एक अद्भुत रचना है। इस काविता में नव वर्ष की शुभकामनाओं के साथ-साथ जीवन में नई उमंग और उत्साह की भावना को भी व्यक्त किया गया है।

काविता की भाषा सरल और स्पष्ट है, जिससे पाठकों को इसका अर्थ समझने में आसानी होती है। कविता में उपयोग किए गए शब्दों और मुहावरों का चयन भी बहुत अच्छा है, जो इसकी भावनात्मकता और गहराई को बढ़ाता है।

इस काविता का मुख्य संदेश यह है कि नव वर्ष हमें नई उमंग और उत्साह के साथ जीवन में आगे बढ़ने का अवसर प्रदान करता है। यह हमें अपने बीते हुए वर्ष की गलतियों से सीखने और नए वर्ष में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए प्रेरित करता है।

अंत में, मैं कहना चाहूंगा कि यह काविता वास्तव में एक प्रेरणादायक और भावनात्मक रचना है जो पाठकों को नव वर्ष की शुभकामनाओं के साथ-साथ जीवन में नई उमंग और उत्साह की भावना को भी व्यक्त करती है।
Kavitaon_ki_yatra ने कहा…
आपके हृदयस्पर्शी टिप्पणियों के लिए आभार अनमोल।वास्तव में नवल,नया या नूतन कुछ भी नहीं होता और न ही पुरातन कुछ भी।नवलता या नवीनता मनुष्य को ऊर्जावान बनाने की वह प्रेरणा है जिससे कि वह अपने पुरातन त्रुटियों को संशोधित कर अपने लक्ष्य की ओर अत्यंत तीव्रता से अग्रसर हो सके।
उत्तम बात इसमें यही है कि व्यक्ति ही वह जीव है जो अपनी असफलताओं से सीख लेकर सफलताओं के स्वर्णिम सोपान पर आरूढ़ होता है,भूतपूर्व या पुरातन त्रुटियाँ या गलतियाँ स्मृत नहीं विस्मृत करने से पूर्व उनसे सीख लेने के लिए होती हैं या की जाती हैं।
Kavitaon_ki_yatra ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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