आप सभी के स्नेह,आशीर्वाद व संबल से लगातार दो दिनों के प्रयत्नों के फलस्वरुप मंदाक्रांता छंद,जो बहुत ही सुंदर, किन्तु छंद लेखन के दृष्टिकोण से तनिक कठिन छंद है इसमेंं भाव पिरो पाया।यह छंद कालिदास का अति प्रिय छंद रहा है जिसमें उन्होंने मेघदूतम् का सृजन किया।
आइए इसी छंद में मेरे द्वारा सृजित इन पंक्तियों को हम पढ़ें और यदि पसंद आए तो आपके प्यार, दुलार,आशीर्वाद की अभिलाषा रहेगी।
मंदाक्रांता छंद का विधान:-यह एक वार्णिक छंद है, जिसमें चार चरण होते हैं और दो-दो चरण समतुकांत रखा जाता है।इस छंद में कुल १७ वर्ण तथा ४थे,छठे व सातवें वर्ण पर यति रखा जाता है।
छंद की गणावली इस प्रकार है :-
मगण(मातारा) भगण (भानस) नगण (नसल) तगण (ताराज) तगण (ताराज)+२२
छंद की मापनी इस प्रकार है :-
२२२,२११,१११,२२१,२२१+२२
जागे जो हैं, इस जगत में,जीत की माल पाते।संघर्षों से,विचलित,स्वयं को नहीं ढाल पाते।।
जो कोई भी,सफल जग में,स्वेद भींगा हुआ है।
इच्छाओं को दमन करके,नित्य लागा हुआ है ।।
वे अज्ञानी,परिश्रम बिना,जो सभी ज्ञान चाहें।
ना तैयारी,उतर सकने, चाह वारीश(समुद्र) थाहें।।
सोचें बैठे,गिरिवर उड़े,आलसी आप जानें।
बोझा हैं वो,इस अवनि पे,पाप संताप मानें।।
सींचें जो हैं,श्रम जलधि सौभाग्यशाली वही है़ं।
बातें ही जो,मनुज करते,भाग्यशाली नहीं हैं।।
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