Pita ke rehte vyakti balak। kavitaon_ki_yatra
Pita ke rehte vyakti balak । kavitaon_ki_yatra
पिता क्या हैं और उनके इस संसार से परमधाम जाने के बाद व्यक्ति को कैसी अनुभूति होती है,मैंने अपने भाव विभिन्न छंदों के माध्यम से आपके समक्ष रखने का प्रयत्न किया है। Pita ke rehte vyakti balak hi hota hai, sachh hi to hai.
Read moreEk mard ka ankaha dard jb aansoo ne aankh se poocha-'kya mard main! '
सर्वप्रथम दोहे छंद में अपने मनोभाव रख रहा हूँ :-
दोहा छंद एक अर्धसममात्रिक छंद है जो चार चरणों में पूर्ण होता है,यानि यहाँ हम ऐसा कह सकते हैं कि केवल चार चरणों में इस छंद में गूढ़ से गूढ़तम बात कही जा सकती है।
इस छंद की लयबद्धता के लिए कल संयोजन का ध्यान रखना अनिवार्य होता है।
सुन्दरतम कल संयोजन से यह सरस ,सुमधुर व मनोहारी बन जाती है 13-11 के इस विधान में कल संयोजन का ध्यान रखकर छंद विद्यार्थी इस सुन्दरतम छंद का अभ्यास कर सकते हैं।
दोहे का प्रथम व तृतीय चरण विषम तथा द्वितीय व चतुर्थ चरण क्रमशः सम चरण कहलाता है।
विषम चरणों की ग्यारहवीं मात्रा लघु होने से दोहे में सरसता लक्षित होती है।
कल संयोजन से हमारा तात्पर्य मात्राओं का सुन्दरतम विभाजन से है:-
कल परिचय-
कलों के कुल तीन प्रकार हैं-
1- द्विकल, 2- त्रिकल, 3- चौकल
1- द्विकल -
दो मत्राओं से बने शब्द या शब्द भाग को द्विकल कहते हैं।
जैसे- अब, जब, की, पी, सी आदि।
द्विकल= 1+1=2 मात्रा
2- त्रिकल-
तीन मात्राओ के शब्द या शब्द भाग से मिलकर बने शब्द त्रिकल कहलाते हैं.
जैसे- राम, काम, तथा, गया हुई आदि।
त्रिकल= 1+1+1
= 1+2
= 2+1
प्रत्येक योग= कुल 3 मात्रा
3- चौकल-
इसी परकार चार मात्राओ के शब्द या सब्द भाग कोे चौकल कहते है।
जैसे- अजगर, अजीत, असगर, रदीफ,
चौकल =1+1+1+1
=1+1+2
=2+1+1
=1+2+1
=2+2
प्रत्येक योग =4 मात्रा
दोहे में कल संयोजन-
पहले चरण व तीसरे चरण में
कल संयोजन इस क्रम में होता है....
= 4+4+3+2 =13 मात्रा
या
=3+3+2+3+2=13 मात्रा
द्वितीय चरण व चौथे चरण में
कल लंयोजन इस क्रम में होता है...
= 4+4+3=11 मात्रा
या
=3+3+2+3=11 मात्रा
तरुवर की हैं छाँव वे,जहाँ मिले आराम।
शुष्क उदर करने हरा,करें पिता हैं काम।।१
जीवन को आधार दे,दिया जगत पहचान।
लोक आचार वो बता,मेटे हैं अज्ञान।।२
मात-पिता से हीन को,पूछे ना संसार।
उछलन कूदन जो यहाँ, सब है इनमें सार।।३
पिता सुरक्षा के कवच, जिससे जीते युद्ध।
कृपा प्राप्त इनकी करें,मार्ग खुले अवरुद्ध।।४
भारत भूषण पाठक'देवांश'🙏🌹🙏
कुंडल छंद
छंद विधान गुरुजनों के मार्गदर्शनानुसार:--२२ मात्रा प्रति चरण,१२-१० मात्रा पर यति,यति पूर्व
तथा उपरांत त्रिकल अनिवार्य है।चरणान्त गुरु गुरु,
चार चरण।दो-दो चरण समतुकांत
अमोल रत्न हैं पिता,सकल जगत जाने।
ईश रूप सदा यहाँ,यही सभी माने।।
हाथ थाम चलें सदा,नीति ज्ञान देते।
साथ आज यहाँ नहीं,ढूँढ रहे आते।।
भारत भूषण पाठक'देवांश'🙏🌹🙏
चामर छंद
छंंद विधान गुरुजनों के मार्गदर्शनानुसार:-
२१ २१ २१ २१ २१ २१ २१ २=कुल २३ वर्ण ,
यह एक वार्णिक छंद है।
शून्य में विलीन हो कहाँ गए पिता।
मौन गौन क्यों ज़रा अभी मुझे बता पता।
वीर धीर था तभी बची न वीरता यहाँ।
उग्र थे कभी यहाँ बची आज धीरता वहाँ।।
भारत भूषण पाठक'देवांश'🙏🌹🙏
शिखरिणी छंद
विधान गुरुजनों के मार्गदर्शनानुसार:-यह एक वार्णिक छंद है।
इसमें चार चरण होते हैं।
इसके प्रत्येक चरण में १७ वर्ण होते हैं। प्रत्येक चरण में ६ वें वर्ण और फिर ११ वें वर्ण पर यति होती है।
* हिंदी में तुकांत होना अनिवार्य है, अत: दो- दो या चारों चरण समतुकांत हो सकते हैं।
122 222,111 11 22 11 1 2
पिता के होने से,सबल रहता मानव यहाँ।
नहीं कोई चिन्ता,मगन रहता मानव यहाँ।।
बने छोटा बच्चा,भ्रमण करता वो जगत में।
करें क्यों जी इच्छा,जनक रहता जो संगत है।।
कुछ आवश्यक प्रश्न और इस छंद से संबंधित उत्तर
१.क्या दोहा छंद नवीन छंद साधकों के लिए पहली प्राथमिकता होनी चाहिए?
उत्तर-यह सभी छंदों की रीढ़ है,गुरुजनों ने मार्गप्रशस्त करते हुए बताया है कि नवीन छंद साधकों को पूर्ण निष्ठा के साथ इस छंद का अभ्यास करना चाहिए।
२. दोहा छंद किस प्रकार का छंद है ?
उत्तर- विद्वतजनों के मार्गदर्शनानुसार यह एक अर्धसममात्रिक छंद है,सरलार्थों में कहा जाय तो यह वह छंद होता है जिसका पहला व तीसरा चरण तथा दूसरा व चौथा चरण समान होता है।
३.दोहा लेखन का प्रारम्भ कहाँ से हुआ?
उत्तर- संत तुलसीदास व कबीरदास द्वारा रचित पदों से प्रतीत होता है कि दोहा लेखन का श्रेय इन्हीं प्राचीन साहित्यकारों को जाता है।
३.दोहे छंद के विधान को लिखें ?
उत्तर-इस अर्धसम मात्रिक छंद के विषम चरण यानि पहले व तीसरे चरण में १३-११ की मात्रा पर तथा इसके सम चरण यानि दूसरे व चौथे चरण में ११-११ की मात्रा पर यति होती है।
४. दोहे के विषम चरणों का अन्त किस प्रकार करने से लय भंग नहीं होती ?
उत्तर- दोहे के विषम चरणों का अन्त लघु गुरु या(१ २) से होने से लय भंग नहीं होता है
५.दोहे के सम चरणों का अन्त किस प्रकार होना अनिवार्य है ?
उत्तर- दोहे के सम चरणों का अन्त समतुकांत व गुरु लघु (२ १)
पर होना अनिवार्य है।
६. दोहे के विषम चरणों के अन्त जगण शब्दों से नहीं होते हैं,जगण शब्दों से हमारा अभिप्राय क्या है ?
उत्तर- जगण शब्दों से हमारा अभिप्राय है लघु गुरु लघु (१ २ १)
यानि एक मात्रा,दो मात्रा और १ मात्रा वाले शब्दों से विषम चरणों के प्रारम्भ नहीं होते,इसके अपवाद के रूप में कुछ दोहे हैं:-संत कबीरदास,तुलसीदास इत्यादि के।
७.मात्रा किसे कहते हैं ?
उत्तर-वर्णों को उच्चारित करने में लगने वाले समय को मात्रा कहते हैं।
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#शिखरिणी छंद#कुंडल छंद#दोहे छंद#पिता जीवन को आधार देते हैं।
सर्वप्रथम दोहे छंद में अपने मनोभाव रख रहा हूँ :-
दोहा छंद एक अर्धसममात्रिक छंद है जो चार चरणों में पूर्ण होता है,यानि यहाँ हम ऐसा कह सकते हैं कि केवल चार चरणों में इस छंद में गूढ़ से गूढ़तम बात कही जा सकती है।
इस छंद की लयबद्धता के लिए कल संयोजन का ध्यान रखना अनिवार्य होता है।
सुन्दरतम कल संयोजन से यह सरस ,सुमधुर व मनोहारी बन जाती है 13-11 के इस विधान में कल संयोजन का ध्यान रखकर छंद विद्यार्थी इस सुन्दरतम छंद का अभ्यास कर सकते हैं।
दोहे का प्रथम व तृतीय चरण विषम तथा द्वितीय व चतुर्थ चरण क्रमशः सम चरण कहलाता है।
विषम चरणों की ग्यारहवीं मात्रा लघु होने से दोहे में सरसता लक्षित होती है।
कल संयोजन से हमारा तात्पर्य मात्राओं का सुन्दरतम विभाजन से है:-
कल परिचय-
कलों के कुल तीन प्रकार हैं-
1- द्विकल, 2- त्रिकल, 3- चौकल
1- द्विकल -
दो मत्राओं से बने शब्द या शब्द भाग को द्विकल कहते हैं।
जैसे- अब, जब, की, पी, सी आदि।
द्विकल= 1+1=2 मात्रा
2- त्रिकल-
तीन मात्राओ के शब्द या शब्द भाग से मिलकर बने शब्द त्रिकल कहलाते हैं.
जैसे- राम, काम, तथा, गया हुई आदि।
त्रिकल= 1+1+1
= 1+2
= 2+1
प्रत्येक योग= कुल 3 मात्रा
3- चौकल-
इसी परकार चार मात्राओ के शब्द या सब्द भाग कोे चौकल कहते है।
जैसे- अजगर, अजीत, असगर, रदीफ,
चौकल =1+1+1+1
=1+1+2
=2+1+1
=1+2+1
=2+2
प्रत्येक योग =4 मात्रा
दोहे में कल संयोजन-
पहले चरण व तीसरे चरण में
कल संयोजन इस क्रम में होता है....
= 4+4+3+2 =13 मात्रा
या
=3+3+2+3+2=13 मात्रा
द्वितीय चरण व चौथे चरण में
कल लंयोजन इस क्रम में होता है...
= 4+4+3=11 मात्रा
या
=3+3+2+3=11 मात्रा
तरुवर की हैं छाँव वे,जहाँ मिले आराम।
शुष्क उदर करने हरा,करें पिता हैं काम।।१
जीवन को आधार दे,दिया जगत पहचान।
लोक आचार वो बता,मेटे हैं अज्ञान।।२
मात-पिता से हीन को,पूछे ना संसार।
उछलन कूदन जो यहाँ, सब है इनमें सार।।३
पिता सुरक्षा के कवच, जिससे जीते युद्ध।
कृपा प्राप्त इनकी करें,मार्ग खुले अवरुद्ध।।४
भारत भूषण पाठक'देवांश'🙏🌹🙏
कुंडल छंद
छंद विधान गुरुजनों के मार्गदर्शनानुसार:--२२ मात्रा प्रति चरण,१२-१० मात्रा पर यति,यति पूर्व
तथा उपरांत त्रिकल अनिवार्य है।चरणान्त गुरु गुरु,
चार चरण।दो-दो चरण समतुकांत
अमोल रत्न हैं पिता,सकल जगत जाने।
ईश रूप सदा यहाँ,यही सभी माने।।
हाथ थाम चलें सदा,नीति ज्ञान देते।
साथ आज यहाँ नहीं,ढूँढ रहे आते।।
भारत भूषण पाठक'देवांश'🙏🌹🙏
चामर छंद
छंंद विधान गुरुजनों के मार्गदर्शनानुसार:-
२१ २१ २१ २१ २१ २१ २१ २=कुल २३ वर्ण ,
यह एक वार्णिक छंद है।
शून्य में विलीन हो कहाँ गए पिता।
मौन गौन क्यों ज़रा अभी मुझे बता पता।
वीर धीर था तभी बची न वीरता यहाँ।
उग्र थे कभी यहाँ बची आज धीरता वहाँ।।
भारत भूषण पाठक'देवांश'🙏🌹🙏
शिखरिणी छंद
विधान गुरुजनों के मार्गदर्शनानुसार:-यह एक वार्णिक छंद है।
इसमें चार चरण होते हैं।
इसके प्रत्येक चरण में १७ वर्ण होते हैं। प्रत्येक चरण में ६ वें वर्ण और फिर ११ वें वर्ण पर यति होती है।
* हिंदी में तुकांत होना अनिवार्य है, अत: दो- दो या चारों चरण समतुकांत हो सकते हैं।
122 222,111 11 22 11 1 2
पिता के होने से,सबल रहता मानव यहाँ।
नहीं कोई चिन्ता,मगन रहता मानव यहाँ।।
बने छोटा बच्चा,भ्रमण करता वो जगत में।
करें क्यों जी इच्छा,जनक रहता जो संगत है।।
कुछ आवश्यक प्रश्न और इस छंद से संबंधित उत्तर
१.क्या दोहा छंद नवीन छंद साधकों के लिए पहली प्राथमिकता होनी चाहिए?
उत्तर-यह सभी छंदों की रीढ़ है,गुरुजनों ने मार्गप्रशस्त करते हुए बताया है कि नवीन छंद साधकों को पूर्ण निष्ठा के साथ इस छंद का अभ्यास करना चाहिए।
२. दोहा छंद किस प्रकार का छंद है ?
उत्तर- विद्वतजनों के मार्गदर्शनानुसार यह एक अर्धसममात्रिक छंद है,सरलार्थों में कहा जाय तो यह वह छंद होता है जिसका पहला व तीसरा चरण तथा दूसरा व चौथा चरण समान होता है।
३.दोहा लेखन का प्रारम्भ कहाँ से हुआ?
उत्तर- संत तुलसीदास व कबीरदास द्वारा रचित पदों से प्रतीत होता है कि दोहा लेखन का श्रेय इन्हीं प्राचीन साहित्यकारों को जाता है।
३.दोहे छंद के विधान को लिखें ?
उत्तर-इस अर्धसम मात्रिक छंद के विषम चरण यानि पहले व तीसरे चरण में १३-११ की मात्रा पर तथा इसके सम चरण यानि दूसरे व चौथे चरण में ११-११ की मात्रा पर यति होती है।
४. दोहे के विषम चरणों का अन्त किस प्रकार करने से लय भंग नहीं होती ?
उत्तर- दोहे के विषम चरणों का अन्त लघु गुरु या(१ २) से होने से लय भंग नहीं होता है
५.दोहे के सम चरणों का अन्त किस प्रकार होना अनिवार्य है ?
उत्तर- दोहे के सम चरणों का अन्त समतुकांत व गुरु लघु (२ १)
पर होना अनिवार्य है।
६. दोहे के विषम चरणों के अन्त जगण शब्दों से नहीं होते हैं,जगण शब्दों से हमारा अभिप्राय क्या है ?
उत्तर- जगण शब्दों से हमारा अभिप्राय है लघु गुरु लघु (१ २ १)
यानि एक मात्रा,दो मात्रा और १ मात्रा वाले शब्दों से विषम चरणों के प्रारम्भ नहीं होते,इसके अपवाद के रूप में कुछ दोहे हैं:-संत कबीरदास,तुलसीदास इत्यादि के।
७.मात्रा किसे कहते हैं ?
उत्तर-वर्णों को उच्चारित करने में लगने वाले समय को मात्रा कहते हैं।
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