क्यों अपनी मौन व्यथा नहीं कहते ये आँसू? जानिए आँसुओं के अनमोल मूल्य की कहानी।Kavitaon_ki_yatra
अनमोल मोती: क्यों अपनी मौन व्यथा नहीं कहते ये आँसू
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| Ek ladki ki ansoo bahati hui close-up photo, Meta Al se nirmit |
अनगिनत ध्वनियों के बीच सुप्त व्यथा की सिसकी संभवतः सुनाई ही नहीं देती है, क्योंकि अनगिनत ध्वनियों के बीच इन्हें सुन पाना संभव ही नहीं होता। आखिर क्यों अपनी मौन व्यथा नहीं कह पाते ये आँसू? इन आँसूओं का अपनी सुप्त यानी मौन व्यथा का प्रदर्शन न करना, इस बात का कहीं संकेतक तो नहीं कि इन्होंने सागर की भांति अपने अंतस में अपनी मौन व्यथा को संचय करना स्वीकार लिया।
अपनी मार्मिक पंक्तियों में इसी सुप्त व्यथा और संचित मौन का रहस्य खोलने का प्रयास मैंने किया है। । यह कविता छंद की दृष्टि से 'विधाता छंद' का सुंदर उदाहरण प्रस्तुत करती है, जो इसकी प्रवाहमयता और लय को बढ़ा देता है।
मेरी इन स्वरचित मार्मिक पंक्तियों में मैंने इनका सच्चा और अनमोल मूल्य बताने का प्रयास किया है:-
"नहीं ये शोर करते हैं, सदा ही चुप, रहा करते।
कभी जब दर्द होता है, तभी भी मौन ही झरते।।"
मौन वार्ता करते हैं ये आँसू: कौन झाँक पाए इनके अंतस में?
ये आँसू सदा ही चुप रहा करते हैं। क्या यह चुप्पी केवल शोर की अनुपस्थिति है, या यह चुप्पी ही उनकी मौन वार्ता का माध्यम है?चुप्पी में छिपी शक्ति का संवाद
अंतरंग संवाद: ये आँसू हमारे और हमारे अंतर्मन के बीच का सबसे अंतरंग संवाद हैं। जब दुनिया हमें नहीं समझ पाती, तब ये चुपचाप हमारी व्यथा को स्वीकार करते हैं और उसे बाहर आने का रास्ता देते हैं।
अद्वितीय शक्ति: उनकी यह चुप्पी महज़ कमज़ोरी नहीं है, बल्कि उनकी अद्वितीय शक्ति है। जिस भावना को शब्दों की ज़रूरत नहीं, वह भावना कितनी गहरी होगी, इसका अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
भावों का प्रकटीकरण: जब इंसान शब्दों में अपना दर्द बयाँ नहीं कर पाता, तब ये मौन बूँदें ही अंदर के सारे तूफ़ान को बाहर लाती हैं, जो सीधे आत्मा से संवाद करती हैं।
बड़ा ही मूल्य इसका है: आँसुओं को व्यर्थ न बहाने का संदेश
इस कविता की सबसे महत्वपूर्ण पंक्तियाँ हमें एक अनमोल धरोहर को सहेजने की सलाह देती हैं:"बड़ा ही मूल्य इसका है, बहाने से, तभी डरते।
अनमोल मोतियों के प्रति सम्मान
मूल्यवान धरोहर: यह आँसू इतना कीमती है कि इसे व्यर्थ ही हर छोटी-मोटी बात पर बर्बाद नहीं करना चाहिए।
संरक्षण का अर्थ: "इसे ऐसे बहाना ना" का मतलब है कि अपनी भावनाओं के भंडार को संभालकर रखें। ये आँसू उन विशेष पलों के लिए आरक्षित होने चाहिए जब दर्द सच्चा हो या ख़ुशी अत्यधिक हो।
भावनात्मक स्थिरता: जो व्यक्ति हर बात पर आँसू बहाता है, वह धीरे-धीरे उनके मूल्य को कम कर देता है। इसलिए इन्हें बचाना, अपनी भावनात्मक स्थिरता को बचाना है।
निष्कर्ष : अनमोल मोतियों का संचय: विसर्जित न करें इस मौन शक्ति को
इन पंक्तियों में मैंने मौन में छिपी शक्ति और अपने जज़्बातों के प्रति गहरे सम्मान को दर्शाने का प्रयत्न किया है।आँसू केवल व्यथा नहीं हैं; ये हमारे आंतरिक सागर के अनमोल मोती हैं।
इन्हें "ऐसे बहाना ना" और "बचाओ तुम, इसे गिरते" – एक आह्वान है भावनात्मक परिपक्वता का।
यह सिखाता है कि जिस प्रकार सागर चुपचाप अपनी विशालता को संचित रखता है, हमें भी अपनी मौन शक्ति, अपनी सुप्त व्यथा को, केवल सच्चे और महत्वपूर्ण क्षणों के लिए सहेज कर रखना चाहिए।
अपने आँसुओं को शक्ति का प्रतीक बनाएं, कमज़ोरी का नहीं। उन्हें तभी बहने दें जब मौन वार्ता की आवश्यकता हो और शब्दों की सीमा टूट जाए।
आपकी दृष्टि में, एक सच्चे दुःख में आँसू बहाने और व्यर्थ में उन्हें विसर्जित कर देने में क्या अंतर है? अपने विचार कमेंट बॉक्स में साझा कर, इस मौन शक्ति को सम्मानित करें।
१.पंचचामर छंद की परिभाषा तथा विधान बताएं ?
उत्तर- पंचचामर छंद एक वार्णिक छंद है, जिसमें कुल १६ वर्ण होते हैं। इस छंद का विधान लघु गुरु संयोजन×८= १६
वर्ण तथा मापनी इस प्रकार हैं:-
१२ १२ १२ १२ १२ १२ १२ १२
२.डमरू घनाक्षरी छंद की परिभाषा तथा विधान बताएं ?
उत्तर-यह भी एक वार्णिक छंद है जिसमें कुल ३२ वर्ण होते हैं।
डमरू की निनाद डमक डम ,डमक डम की भांति श्रुति में प्रतीत होने वाला यह छंद कवियों द्वारा अति पसंद किया जाता है।
चार पदों वाले इस छंद की मापनी इस प्रकार हैं
८-८-८-८ वर्ण प्रति चरण तुकांत तथा सभी वर्ण लघु होंगे।
३.चुलियाला छंद की परिभाषा तथा विधान बताएं ?
उत्तर- इस मात्रिक छंद में दोहे के विषम चरणों को यथावत(१३ मात्रा) रखकर सम चरणों के पदांत यानि (११ मात्रा) के बाद १२११ जोड़कर लिखा जाता है।
४.छंद विज्ञों के अनुसार चुलियाला छंद का एक और क्या नाम है तथा इसके कितने प्रकार प्रसिद्ध हैं :-
उत्तर-छंद विज्ञों के अनुसार चुलियाला छंद का एक और नाम चूड़ामणि छंद है तथा विद्वानों के अनुसार इसके आठ प्रकार प्रसिद्ध है,जो दोहे के विषम चरणों के ११ मात्रा के बाद आने वाले पचकल मात्राओं में कुछ बदलाव से निर्मित होते हैं।
५.ताण्डव छंद की विधान तथा परिभाषा बताएं ?
उत्तर-यह एक आदित्य जाति का छंद है,जिसमें चार चरण तथा दो-दो या चारों चरण समतुकांत होने के साथ-साथ पदांत १२१ तथा आरंभ लघु मात्रा से अनिवार्य होता है।
६.आदित्य जाति के छंद से क्या आशय है ?
उत्तर- आदित्य जाति के छंद से आशय ऐसे छंदों से है जिसकी मात्राभार १२ मात्रा प्रतिपद होती है।
७.आँसू छंद के विधान को बताएँ ?
उत्तर:- यह एक समपद मात्रिक छंद है,जिसमें प्रति पद २८ मात्रा,१४-१४ के यति खंडों में विभक्त होकर रहता है।इसमें दो-दो चरणों में समतुकांतता रखी जाती है।
मात्रा बाँट के लिए प्रति चरण की प्रथम दो मात्राएँ सदैव द्विकल के रूप में रहती है जिसमें ११ या २ दोनों रूप मान्य हैं।बची हुई १२ मात्रा में चौकल अठकल की निम्न संभावनाओं में से कोई
भी प्रयोग में लाई जा सकती है,आदरणीय वासुदेव अग्रवाल'नमन' जी के मार्गदर्शनानुसार:-
तीन चौकल
चौकल+ अठकल
अठकल+चौकल
८.विधाता छंद विधान बताएँ?
उत्तर-यह एक 28 मात्रा युक्त मात्रिक छंद है जिसकी पहली , आठवीं , पंद्रहवीं , बाइसवीं मात्रा लघु अनिवार्य होती है , दो दो चरण समतुकांत 14- 14 की यति के साथ l
भार युक्त मापनी
1 2 2 2 1 2 2 2 , 1 2 2 2 1 2 2 2
लगागागा लगागागा , लगागागा लगागागा
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