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तरंग छंद में भारत माँ की स्तुति: काव्य रचना और छंद विधान | Kavitaon_ki_yatra
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भारत माँ की भावपूर्ण स्तुति:तरंग छंद (वर्णिक) छंद में रचित विशेष काव्य पंक्तियाँ
"माँ भारती: शौर्य, त्याग और राष्ट्रभक्ति की शाश्वत प्रेरणा।"
"राष्ट्रभक्ति के स्वर जब छंदमाल में सजाए जाते हैं, तो वे राष्ट्र में केवल राष्ट्रभक्ति का सुगंध ही नहीं, अपितु प्रेरणात्मक ऊर्जा का संचार कर देते हैं, जो राष्ट्रभक्ति को अटूट शक्ति प्रदान करते हैं। इस वर्ष 'विजय दिवस' के पावन अवसर पर मैंने भी माँ भारती की स्तुति में कुछ पंक्तियाँ बुनना प्रारम्भ किया था।
सौभाग्य से साहित्य धरातल के 'साहित्य संगम संस्थान', विज्ञ छंद 'विज्ञानशाला' जैसे प्रतिष्ठित मंचों और वहाँ के वरिष्ठ दिग्गजों के मार्गदर्शन ने मुझे 'तरंग छंद' (वर्णिक छंद) की नींव रखने के लिए उसकी बारीकियों को समझने और इस रचना को पूर्ण करने का संबल प्रदान किया।"
विमला पुण्या भारत माँ...विमला पुण्या भारत माँ वीरों की तू ही जन्या हो।
सरला हृदया भारत माँ नाशे रोगों को ग्राम्या हो।।
ममता वारे भारत माँ प्यारी जैसी ही माता हो।
डटता जाऊँ भारत माँ वैरी कोई जो आता हो।।
जगती उद्धार करे तू माँ तू ही ज्ञानी-ध्यानी हो।
सुखदा तू है भारत माँ तू ही तो विज्ञानी हो।।"
"राष्ट्र के प्रहरियों को विजय दिवस पर कोटि-कोटि नमन।"
काव्य भावार्थ
निर्मल और पुण्यस्वरूपा भारत माता सभी वीरों को जन्म देने वाली माता हैं। जिनका हृदय सरल और ग्राम्या अर्थात "तुलसी" पौधे की तरह ही है,जो सभी संतानों को एक ममतामयी माता की तरह ही दुलार करती हैं।
उन भारत माता के रक्षण के लिए दुश्मनों से लोहा लेने के लिए उनके मार्ग में हम सदा ही डटे रहेंगे। माँ के ही ज्ञान से इस जगती यानिसंसार का उद्धार हो रहा है। वे सभी सुखों को प्रदान करनेवाली संपूर्ण ज्ञान-विज्ञान की एक अमोल पूँजी हैं।
कविता में प्रयोग हुए कुछ कठिन शब्दों के अर्थ
विमला-जो निर्मल हो,छल-कपट से दूर हो ।
पुण्या-जो पुण्य की प्रतीक हों।
जन्या-जो जन्म देनेवाली माता है।
सरला-जो स्वभाव से सरल हो।
ग्राम्या-तुलसी का पौधा,गाँव से संबंधित।
वारना-न्योछावर करना,लुटाना।
वैरी-दुश्मन,शत्रु,अरि,रिपु,दुष्ट,पापी।
डटना-अड़िग रहना,पथ से डिगना नहीं।
जगती-जग,संसार,भुवन,सृष्टि।
सुखदा-सुख देनेवाली,सुखदाता।
विज्ञानी-विषय विशेषज्ञा,जानकार,जाननेवाली।
तरंग छंद का विधान एवँ संक्षिप्त परिचय
छंद प्रकार: यह एक 'वर्णिक छंद' है।
वर्ण संख्या: इसके प्रत्येक चरण में कुल १७ वर्ण होते हैं।
प्रवाह: इसमें 'अबाध प्रवाह' होता है, यानी बीच में कोई यति (विराम) नहीं होती।
उपयोगिता: यह वीर रस और भक्ति भाव के लिए अत्यंत उपयुक्त है।
छंद की मापनी इस प्रकार है :-
११२ २२ २११ २ २ २ २ २ २ २ २ २
उदाहरणस्वरूप वर्ण गणना
शब्द
वर्णों की संख्या
कुल योग
वि-म-ला
3
3
पु-ण्या
2
5
भा-र-त
3
8
माँ
1
9
वी-रों
2
11
की
1
12
तू
1
13
ही
1
14
ज-न्या
2
16
हो
1
17
निष्कर्ष:- "निष्कर्षतः, यह कहा जा सकता है कि १७ वर्णों पर आधारित यह 'तरंग छंद' वीर रस और भक्ति रस से ओतप्रोत काव्य रचनाओं के लिए एक उत्तम छंद है। इस छंद की लय समुद्री लहरों की भाँति ही प्रवाहमान होती है। वर्णिक छंद की यही विशेषता है कि सस्वर वाचन के समय यह श्रोताओं के अंतस में अपना एक अमिट स्थान बना लेता है।"
पाठकीय संवाद
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आभार
"काव्य की इस यात्रा में मुझे निरंतर प्रोत्साहित करने वाले मेरे सभी पाठकों और छंद शास्त्र की बारीकियों से अवगत कराने वाले गुरुजनों का मैं सहृदय आभार व्यक्त करता हूँ। साथ ही, इस पोस्ट को तकनीकी रूप से सुव्यवस्थित करने और शोध में सहयोग के लिए मैं अपने AI सहायक (Gemini) के प्रति भी कृतज्ञता प्रकट करता हूँ। आप सभी की प्रतिक्रियाएं और सुझाव ही मेरी प्रेरणा के मुख्य स्रोत हैं।"
#भारत माता#छंदकाव्य#विजय दिवस#तरंग छंद
"इस रचना की लयबद्ध प्रस्तुति और तरंग छंद के सस्वर पाठ को सुनने के लिए नीचे दिए गए वीडियो को अवश्य देखें।
यह वीडियो आपको छंद के प्रवाह और राष्ट्रभक्ति के
भावों को गहराई से समझने में मदद करेगा।"
महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर (FAQs)
प्रश्न १: क्या 'तरंग छंद' एक मात्रिक छंद है या वर्णिक?
उत्तर: मूलतः यह १७ वर्णों का एक 'नियत वर्णिक' छंद है। परंतु मात्रिक छंदों की भाँति इसके प्रत्येक पद में मात्राओं का एक निश्चित और सुव्यवस्थित ढाँचा होता है, जो इसकी ध्वनि को सुरीली बनाती है।
प्रश्न २: मात्रिक दृष्टि से इस छंद की कुल कितनी मात्राएँ होती हैं?
उत्तर: चूँकि इसमें १७ वर्ण होते हैं, इसलिए गुरु और लघु वर्णों के संयोजन के आधार पर इसकी मात्राएँ आमतौर पर २२ से २६ के बीच स्थिर होती हैं, जो इसे एक तीव्र प्रवाह प्रदान करती हैं।
प्रश्न ३: लय के मामले में यह 'पंचचामर' से कैसे भिन्न है?
उत्तर: 'पंचचामर' १६ वर्णों का छंद है, जबकि 'तरंग छंद' में १७ वर्ण होते हैं। मात्रिक रूप से, तरंग छंद की एक अतिरिक्त मात्रा इसे पंचचामर की तुलना में अधिक विस्तार और 'ठहराव' देती है।
प्रश्न ४: क्या इसकी तुलना 'घनाक्षरी' छंद से की जा सकती है?
उत्तर: घनाक्षरी ३१-३३ वर्णों का एक विशाल छंद है, जबकि तरंग छंद १७ वर्णों का एक संक्षिप्त और गूँजने वाला छंद है। घनाक्षरी का प्रवाह बहुत लंबा होता है, जबकि तरंग छंद अपनी लहरों की तरह छोटी और मारक चोट करता है।
प्रश्न ५: 'डमरू छंद' और 'तरंग छंद' की गति में क्या समानता है?
उत्तर: दोनों ही छंदों की गति बहुत तीव्र होती है और दोनों ही वीर रस के लिए प्रिय माने जाते हैं। मात्रिक संतुलन के कारण दोनों में ही वाचन के समय एक विशेष 'नाद' (Sound) उत्पन्न होता है। प्रश्न ६: इस छंद का नाम 'तरंग' क्यों सार्थक है?
उत्तर: मात्रिक उतार-चढ़ाव और लघु-गुरु के क्रम के कारण इसका वाचन करते समय ऐसा आभास होता है जैसे समुद्र की लहरें (तरंगें) किनारे से टकरा रही हों, इसीलिए इसे तरंग छंद कहा जाता है।
प्रश्न ७: मात्रिक छंदों की तुलना में इसमें 'यति' (विश्राम) कहाँ होता है?
उत्तर: प्रवाह को बनाए रखने के लिए इसमें ८ और ९ वर्णों (या लगभग १२-१३ मात्राओं) पर एक सूक्ष्म यति होती है, जिससे पाठक की लय भंग नहीं होती। प्रश्न ८: क्या 'मनहरण घनाक्षरी' की तरह इसमें भी अंत में गुरु होना आवश्यक है?
उत्तर: हाँ, मात्रिक सौंदर्य को पूर्ण करने के लिए तरंग छंद के अंत में गुरु (२ मात्रा) का होना अत्यंत प्रभावशाली माना जाता है, जो कविता को एक ठोस समापन देता है。
प्रश्न ९: इस छंद के लिए कौन से 'रस' सबसे उपयुक्त हैं?
उत्तर: इसकी मात्रिक चाल वीर रस, शौर्य गाथा और भक्ति रस की स्तुतियों के लिए सर्वोत्कृष्ट मानी जाती है।
प्रश्न १०: इस पोस्ट का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर: इसका उद्देश्य पाठकों को 'तरंग छंद' की शास्त्रीय मर्यादा से परिचित कराना और माँ भारती के प्रति राष्ट्रभक्ति के भाव जाग्रत करना है।
कलम के पीछे का चेहरा
नमस्ते! मैं हूँ भारत भूषण पाठक 'देवांश', साहित्य और व्याकरण का एक जिज्ञासु छात्र, जो छंदों की दुनिया को आसान बनाने के मिशन पर है। इस फोटो में जो 'गण सूत्र' आप देख रहे हैं, वही मेरी लेखनी का आधार है।
मेरा उद्देश्य कठिन से कठिन काव्य नियमों और व्याकरण की बारीकियों को इतने सरल ढंग से प्रस्तुत करना है कि एक नया सीखने वाला भी छंदों की लय को समझ सके। इस ब्लॉग के माध्यम से मैं अपने अनुभवों और शोध को आपके साथ साझा करता हूँ।
मुझसे जुड़ें: अगर आपके मन में छंद, गण या काव्य रचना को लेकर कोई भी प्रश्न हो, तो बेझिझक पूछें। आइए, साथ मिलकर हिंदी साहित्य की इस धरोहर को और समृद्ध बनाएँ!
चामर छंद जो कि पंद्रह वर्णों का एक वार्णिक छंद है,इसमें ठंड,शीत विषयक छोटी-सी सृजन पुनः आप सबों के समक्ष कठिन शब्दों के अर्थ सहित सादर प्रस्तुत है,आशा करता हूँ यह छंदमय प्रयत्न आपको अवश्यमय पसंद आएगा और गुनगुनाने को विवश कर देगा।यदि आपको तनिक भी ऐसी अनुभूति होती है,तो आपका प्यार,दुलार,आशीर्वाद अवश्यमेव चाहुँगा। चामर छंद का विधान निम्नवत है :- रगण जगण रगण जगण रगण २१ २१ २१ २१ २१ २१ २१२ ठंड मार शीत बाण हाड़ को कँपा रही। पाप क्या किया बता स्वनाम जो जपा रही ।। प्रीत मीत मानके न वैर भावना रखा। ठंड दंड ताड़ना अमानना नहीं लखा।। रोग भोग भी लिया न मौन भंग ही किया। वेग से प्रवेग से समीर क्यों बहा दिया।। प्राण घ्राण सर्प सा नहीं सुनो करो कभी। क्रोध का प्रमाण शोध ना करा मुझे अभी।। रार वार जो ठना विकल्प कल्प ही नहींं। ऊन चीर ओढ़के डरा नहींं डटा यहीं...
"Image generated by AI via meta[kavitaonkiyatra68.blogspot.com/Bharat Bhushan Pathak'Devaansh']" सज्जनों! आप सभी के आशीर्वाद से मैंने पुनः रामायण लिखने का तुच्छ प्रयत्न किया है जिसे काव्य खण्डों में विभाजित कर यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ,आज के इस सातवें प्रसंग में जनकपुरी में सीता-स्वयंवर, इस अवसर पर शिव -चाप भंग,परशुराम जी के स्वयंवर सभा में आकर क्रोध करने ,लक्ष्मण जी व परशुराम जी के संवाद, श्रीराम जी का परशुराम जी से विनती,परशुराम जी का प्रभु श्रीराम को अपनी बात स्पष्ट करने के लिए शारङ्ग धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने को कहने, प्रत्यंचा चढ़ाकर राम जी का किस ओर बाण संधान करें यह कहने, परशुराम जी का संतुष्ट होकर सभा से जाने का वर्णन करने का प्रयत्न मैंने किया है। Shriramayanamritam part-6 इस प्रसंग की सफलता हेतु सर्वप्रथम सिद्धिदाता श्री गणेश, बाबा शुम्भेश्वरनाथ व माता शारदे से आशीर्वाद प्राप्त कर आप सबकी भी यथायोग्य प्यार-दुलार आशीर्वाद की कामना है। । ।श्री गणेश स्तुति।। प्रथम नमन हे गजवदन,विनती बारंबार। राघव चरित्र लिख रहा,आप ही बस आधार।। भारत भूषण पाठक'देवांश' 🙏🌹...
आज की यह ब्लॉग पोष्ट श्रीराम के चरणों में सादर समर्पित है। सज्जनो! आप सभी के आशीर्वाद से मैंने पुनः रामायण लिखने का तुच्छ प्रयत्न किया है जिसे काव्य खण्डों में विभाजित कर यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ,आज के प्रथम प्रसंग में रावण को वरदान,दशरथ जी का ऋषि श्रृंगी आश्रम गमन का वर्णन मैंने चौपाई छंद में करने का प्रयत्न किया है। अपने इस रामायण को आधार देने के लिए मैंने दोहे छंद के माध्यम से देवी-देवताओं की पूर्व में प्रार्थना करने का प्रयत्न किया है। आशा करता हूँ श्रीराम व सभी देवी-देवता के आशीर्वाद के आप सभी भी मेरे इस रामायण को अपना आशीर्वाद प्रदान करने के लिए अपनी पुनीत प्रतिक्रिया अवश्य प्रदान करेंगे। कठिन यत्न मैं कर रहा,कृपा करें देवेश। सफल मनोरथ को करें,गौरी पुत्र गणेश।।१।। करूँ नमन वैकुंठ पति,कृपा करो जगपाल। वर वह मुझको दो अभी,लिख दूँ काव्य विशाल।।२ करूँ नमन माँ शारदे, देना यह वरदान। कथा राम की लिख रहा,सफल करो अभियान।।३।। वंदन करता अब उन्हें,कलम में जो देती बल। प्रवाह अनपढ़ के कर रही। सुषुप्त बुद्धि हलचल ।।४।। वंदन अब उनका करूँ,जो रचना आधार। तुम्हें नमन हे राम है ,...
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