श्रीरामायणामृतम् भाग-३- अवध कुमारों की बालक्रीड़ा व गुरुकुल महत्व वर्णन
आज की यह ब्लॉग पोष्ट श्रीराम के चरणों में सादर समर्पित है।सज्जनो! आप सभी के आशीर्वाद से मैंने पुनः रामायण लिखने का तुच्छ प्रयत्न किया है जिसे काव्य खण्डों में विभाजित कर यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ,आज के तृतीय प्रसंग में अवध कुमारों की बालक्रीड़ा व दशरथ जी द्वारा गुरुकुल के महत्व का वर्णन आप पढ़ पाएँगे।आप इस पोष्ट में यह अवलोकन करेंगे कि किस प्रकार इन चारों कुमारों के बालक्रीड़ा में मग्न होकर दशरथ जी अपना राजकाज व प्रजाजन अपने कामकाज किस प्रकार भूलने लगे।
बड़ा ही मनमोहक वर्णन करने का प्रयत्न मेरे द्वारा इसमें किया गया है।यदि प्रयत्न पसंद आए तो आपका प्यार,दुलार,आशीर्वाद अवश्य चाहुँगा।
साथ ही इस प्रसंग में एक नवीनतम छंद"रसाल छंद" में इस आनंदमयी क्षण में अयोध्या का अवलोकन आप मेरे प्रयास स्वरूप कर पाएँगे।
बड़ा ही मनमोहक वर्णन करने का प्रयत्न मेरे द्वारा इसमें किया गया है।यदि प्रयत्न पसंद आए तो आपका प्यार,दुलार,आशीर्वाद अवश्य चाहुँगा।
साथ ही इस प्रसंग में एक नवीनतम छंद"रसाल छंद" में इस आनंदमयी क्षण में अयोध्या का अवलोकन आप मेरे प्रयास स्वरूप कर पाएँगे।
श्रीरामायणामृतम् भाग-1
आदरणीय बासुदेव अग्रवाल'नमन'जी का पुनः इस नवीनतम छंद विधान के लिए अग्रिम आभार।आदरणीय द्वारा निर्देशित छंद का विधान इस प्रकार है :-
यह एक वार्णिक छंद है,इस छंद का मात्राविन्यास 'रोला' छंद से कुछ सीमा तक मिलता-जुलता है।यह एक गणाश्रित छंद है,इसलिए इसमें हर वर्ण की मात्रा नियत होती है,पर रोला में ऐसा बंधन नहीं होता।
इस छंद के विधान को संक्षिप्त में "भानजभजुजल" से समझाया जा सकता है अर्थात् "भगण नगण जगण भगण जगण जगण लघु"
इस छंद की मापनी इस प्रकार है :-
२११ १११ १२१//२११ १२१ १२११=कुल १९ वर्ण।
इस छंद में ९वें,१०वें वर्ण पर यति का विधान होता है।
रसाल छंद :-
पावन जप मन नाम,राम सुखधाम कहावत।
भूषण रघुकुल राम,रूप सबको यह भावत।।
मोहत सकल समाज,दृश्य मनभावन लागत।
सोहत अवध कुमार,भाग्य सबके अब जागत।।
।।चौपाई।।
निहाल हुई अयोध्या नगरी। सुन किलकारी त्रिभुवन सगरी।।
ठुमक चले जब चारों भाई। मुदित हुई तब तीनों माई।।
सुध-बुध खोए दशरथ राजा।कारज भूला सकल समाजा।काल प्रगति ज्यों करता जाता।समय निकट पढ़ने को आता।।
चारों गुरुकुल भेजे जाएँ।दशरथ बोले शिक्षा पाएँ।।
विचार रानी से सब करके।पुत्रों से बोले जी-भरके।।
महत्व गुरु का उन्हें बताया।गुरुकुल शिक्षा को समझाया।।
धर्म सनातन क्या है होता। जो ना जाने क्या है खोता।।
पालन ब्रह्मचर्य का करने। नियमों को सब इसके वरने।।
गुरु की सेवा करनी कैसे।गुरुकुल में रहना है कैसे।।
बोले उनसे राजा दशरथ। पूर्ण होंगे सकल मनोरथ।।
ज्ञान-गुणों के गुरु ही निधि हैं।तरने भवसागर से विधि हैं।।
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