सज्जनो! आप सभी के आशीर्वाद से मैंने पुनः रामायण लिखने का तुच्छ प्रयत्न किया है जिसे काव्य खण्डों में विभाजित कर यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ,आज के द्वितीय प्रसंग में दशरथ जी का पुत्र कामयेष्ठि यज्ञ,ऋषि श्रृंगी का यज्ञ संपन्न कराना,अग्निदेव का प्रकट होकर यज्ञ के फलस्वरूप खीर देना तथा दशरथ जी का खीर को कौशल्या कैकेयी को देने के बाद उनके द्वारा अपना-अपना अंश मँझली रानी सुमित्रा को देना तथा श्रीराम सहित उनके तीन भाई लक्ष्मण,भरत,शत्रुघ्न के जन्म का वर्णन मैंने चौपाई छंद में तथा श्रारीम नाम को आधार मानकर उनके नाम
की महिमा को "सोरठा छंद" में लेखन का प्रयत्न किया है।
आशा करता हूँ श्रीराम व सभी देवी-देवता के आशीर्वाद के आप सभी भी मेरे इस रामायण को अपना आशीर्वाद प्रदान करने के लिए अपनी पुनीत प्रतिक्रिया अवश्य प्रदान करेंगे।
आदरणीय बासुदेव अग्रवाल 'नमन' द्वारा निर्देशित सोरठा छंद विधान :-यह छंद दोहे छंद की भाँति ही अर्ध सममात्रिक छंद है।इस चार चरणों वाले छंद में भी प्रथम व तृतीय तथा चतुर्थ व पंचम क्रमशः विषम तथा सम कहे जाते हैं।
दोहे की भाँति ही इस दो पंक्ति वाले छंद के प्रत्येक पंक्ति में २४-२४ मात्राएँ होती हैं।
अंतर इतना ही है कि दोहे के सम चरण सोरठा में विषम तथा विषम चरण सम बन जाते हैं।इसमें विषम चरणों में तुकांतता रखी जाती है जबकि पंक्ति के अंत के सम चरण अतुकांत रहते हैं।इस छंद में दोहे छंद के विपरीत ११-१३ मात्राओं में यति होती है।
मात्रा बाँट प्रति पंक्ति:-८+२+१,८+२+१+२
सोरठा छंद :-
राम नाम मन जाप,यही प्राण संजीवनी।
मेटे सब संताप,तारे सुन जग से यही।।१।।
राम नाम अवलंब,इसको मन कसकर धरो।
होवे नहीं विलंब,ध्यान सदा ही तुम रखो।।२।।
केवल राम न नाम,जगत का आधार यही ।
जपो इसे अविराम,संबल सुन देगा यही।।३।।
राम सुखों के धाम,हर्षित मन जपते रहे।
छोड़ जगत के काम,काम यह सबसे बड़ा।।४।।
।।चौपाई।।
प्रसन्न मुनि दशरथ से होकर।यज्ञ कराए तन्मय होकर।।
अग्नि यज्ञ से फिर तब आए।पात्र खीर का वर में लाए।
खीर दे छोटी-बड़ी भार्या। जो थी कैकेयी कौशल्या।।
व्यस्त हुए तब राजा दशरथ।होगी पूरी सोच मनोरथ।।
प्रेम बड़ा तीनों रानी में।दशरथ की महारानियों में।।
अंश खीर के अपने-अपने।मँझली को दी रानी द्वय ने।।
नक्षत्र पुनर्वसु तिथि नवमी को।शुक्ल पक्ष चैत्र पावनी को।।
जन्म लिये वे रघुकुल नंदन।दशरथ हिय के थे जो स्पंदन।।
ज्येष्ठ पुत्र का नाम राम था।सब सुख का जो परमधाम था।।
नाम मिला मँझले को लक्ष्मण।त्याग तपस्या के जो दर्पण।।
लक्ष्मण के अरु एक सहोदर।शत्रुघ्न नाम गुणों के सरोवर।।
भरत नाम छोटे ने पाया। इन चारों से जग हर्षाया।।
टिप्पणियाँ
इसमें यज्ञ की प्रक्रिया, ऋषि श्रृंगी का मार्गदर्शन, और अग्निदेव का प्रकट होना जैसे महत्वपूर्ण तत्वों का समावेश किया गया है। राम नाम के महत्व को भी उजागर किया गया है, जो कि भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक है।
कुल मिलाकर, यह ब्लॉग न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह पाठकों को रामायण की गहराई और उसकी शिक्षाओं से भी जोड़ता है। लेखक की काव्यात्मक शैली और भावनात्मक अभिव्यक्ति इसे और भी आकर्षक बनाती है।