रामायणामृतम् (भाग-८): विवाह उत्सव के शुभ अवसर पर श्री गणेश वंदना। kavitaon_ki_yatra
"सज्जनों! आप सभी के आशीर्वाद से मैंने पुनः रामायण लिखने का तुच्छ प्रयत्न किया है, जिसे काव्य-खंडों में विभाजित कर यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ।
🚩 रामायणामृतम् श्रृंखला की अब तक की कड़ियाँ:
इससे पूर्व: सज्जनों! राजा जनक और मुनि विश्वामित्र के इस संवाद से पूर्व, 'शिव धनुष' टूटने और 'भृगुकुल भूषण' परशुराम जी के आगमन का रोमांचक प्रसंग आप यहाँ पढ़ सकते हैं: परशुराम कोप व लक्ष्मण संवाद (भाग-७)
इस कथा को गति देने के लिए मैंने भुजंगप्रयात छंद का आश्रय लिया है। श्री गणेश एवं माँ वागीश्वरी का ध्यान करते हुए इस प्रसंग को प्रस्तुत करने का एक लघु प्रयास किया है।
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| मंगलाचरण: श्री गणेश वंदना (भुजंगप्रयात छंद ) |
॥ श्री गणेश वंदना ॥
।। माता वागीश्वरी की वंदना।।
छंद: भुजंगप्रयात (१२२ १२२ १२२ १२२)
गणों के अधीशा गणेशा कहावें।
विघ्नेशा गणेशा सभी हैं बुलावें।।
गजानं महोदा सदा ही सुहावे।
सुबुद्धिं प्रदाता तुझे हैं रिझावे।।
नमामी शुभेशा कलेशा हरो जी।
कृपासिंधु आओ व्यथा को वरो जी।।
लिखें 'भारतं' 'देव-अंशं' विधाता।
बने तू हि मेरा सदा मोददाता।।
भारत भूषण पाठक' देवांश'
काव्य भावार्थ: हे गणों के स्वामी! आप गणेश कहलाते हैं, विघ्नों को दूर करने वाले विघ्नेशा आप ही हैं। हे महा-उदार (महोदा) गजमुखी गणपति! आप भक्तों को सुबुद्धि प्रदान करते हैं, हम भक्तगण आपको
रिझाने के लिए आपका सुमिरन करते हैं।
हे शुभों के स्वामी (शुभेशा) प्रभो! आपको नमस्कार है, हमारे सभी क्लेश, दुख, संताप और पीड़ा को दूर कर दो। हे कृपासिंधु आओ, मेरी व्यथा को हर लो। यह 'भारत' जो कुछ भी लिख पा रहा है, वह मात्र आपकी दिव्य कृपा और आपके 'देव-अंश' (प्रेरणा) के कारण ही संभव है।
हे विधाता! केवल आप ही मेरे भाग्य के आधार
और सदा आनंद प्रदान करने वाले (मोददाता) हैं।"
वंदना' में प्रयोग किये गए कुछ कठिन शब्दों के अर्थ:-
| कठिन शब्द | अर्थ |
| मोद | आनंद, उल्लास |
| शुभेशा | शुभता के ईश्वर, शुभों के स्वामी |
| देव-अंशं | आपका अंश अर्थात प्रेरणा |
| विघ्नेशा | विघ्न दूर करने वाले, विघ्न को नियंत्रित करने वाले |
| महोदा | महा उदार, कृपालु |
| रिझाना | मनाना, बहलाना |
मरालं विराजे सुबुद्धिं प्रदाता।रचूँ छंद मैं माँ धरो हस्त माता।।उजाला करो माँ अँधेरा घना है।कृपा से तिहारी सभी तो बना है।।सुवीणा बजाती पधारो कुटी में।खिले ज्ञान-पुष्पं अज्ञानी कटी में।।
भारत भूषण पाठक'देवांश'
काव्य भावार्थ :- हे मराल(हंस)पर विराजने वाली,सुबुद्धि प्रदान करने वाली देवी,तुम्हारी जय हो।
मैं फिर एक नूतन छंद रच रहा हूँ,तुम मेरी लेखनी को बल देना।इस जगत में चारों और अज्ञान रूपी घना अँधेरा फैला है,उसे अपने ज्ञान के उजाले से माँ तू दूर कर दे।माँ तुम्ही तो इस सृष्टि की आधार हो,सुंदर मधुर वीणा बजाती हुई माँ तुम इस दीन के बुद्धि कुटिया में पधारो ताकि इस अज्ञानी प्रदेश में भी ज्ञान पुष्प खिल सके।
माता वागीश्वरी की वंदना में आए कुछ कठिन शब्द
शब्द | अर्थ |
| मरालं | हंस |
| सुबुद्धिं | उत्तम बुद्धि |
| तिहारी | आपकी |
| कुटी | झोपड़ी / हृदय रूपी कुटिया |
| अज्ञानी कटी | अज्ञान का क्षेत्र / प्रदेश |
धनुष भंग एवं जनक का विश्वामित्र जी से भेंट
।। चौपाई।।
"भंग चाप कर डाली माला।मुदित जनक के महल विशाला। ""पुलकित मिथिलाधिप नर-नारी।पाके वह वर दीनदयाला।। ""मुदित सुनयना देखि जमाता। सोचि दयाला भए विधाता।। ""भूप निकट गुरुवर के आए। अनुज व्यथा फिर उन्हें सुनाए।।"
चौपाई भावार्थ :-शिव धनुष के टूटते ही जयमाला पहना दी गई और महाराज जनक के विशाल महलों में हर्ष छा गया। दीनदयालु प्रभु राम को वर रूप में पाकर मिथिला के सभी नर-नारी और स्वयं राजा पुलकित हो उठे। माता सुनयना अपने दामाद (श्रीराम) को देखकर आनंदित हैं और सोच रही हैं कि विधाता आज पूर्णतः दयालु हो गए हैं। तभी राजा जनक विश्वामित्र जी के समीप आए और अपने भाई (कुशध्वज) के प्रति अपने मन की व्यथा (अकेलापन/प्रेम) उन्हें सुनाई।
चौपाई में प्रयुक्त कुछ कठिन शब्दार्थ तालिका
| क्रमांक | कठिन शब्द | अर्थ |
|---|---|---|
| १. | मिथिलाधिप | मिथिला + अधिप (मिथिला के राजा) |
| २. | पुलकित | प्रसन्न, अति आनंदित |
| ३. | दयाला | दयालु (खड़ी बोली हिंदी) |
| ४. | मुदित | खुश होना, आनंदित होना |
जनक जी, कुशध्वज जी का गुरु विश्वामित्र से मिलना और अपनी चारों पुत्रियों का उनसे वर्णन कहना
"सुता माण्डवी अरु श्रुतकीरति। रूप शील गुण विनय विमल मति॥""शीश कुशध्वज मुनि को नावा। फेरू जनक को हृदय लगावा॥"
"निरखि निरखि अनूप यह जोड़ी। नर-नारी निकले घर छोड़ी।।"
"कुंठित रूप चंद्र देखि जाहि। भाग्य तिहारी उसको पाई।।"
चौपाई भावार्थ :- कुशध्वज जी की पुत्रियाँ माण्डवी और श्रुतकीरति रूपवान, शीलवान, गुणवंती, विनीत और निर्मल मति की थी। फिर कुशध्वज जी ने मुनिवर को नतमस्तक होकर प्रणाम किया, उसके बाद अपने भाई को हृदय से लगा लिया। यह अनुपम जोड़ी देखकर नर-नारी अपने घर से बाहर निकल आए। ऐसा दिव्यतम स्वरूप कि चंद्रमा भी कुंठित हो जाए और उसपर सीता कितनी सौभाग्यशाली है कि उस चंद्र को लज्जाने वाले को वर रूप में प्राप्त की।
चौपाई में प्रयुक्त कुछ कठिन शब्दार्थ तालिका
कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न
१.क्या गणों के स्वरूप और लक्षण के आधार पर गणों के नाम छंदशास्त्र की पुस्तकों में दिये गए हैं?
उत्तर-हाँ, छंदशास्त्र की पुस्तकों में गणों के स्वरूप और लक्षण के आधार पर गणों के नाम दिये गए हैं।
२. छंदशास्त्र की पुस्तकों में गणों के स्वरूप और लक्षण के आधार पर गणों के नाम जो दिये गए हैं, उनके नाम और लक्षण बताएँ?
उत्तर-छंदशास्त्र की पुस्तकों में गणों के स्वरूप और लक्षण के आधार पर गणों के नाम और लक्षण निम्नलिखित हैं :-
उत्तर- अठारह (१८) मात्राओं वाले छंद पौराणिक जाति के छंद कहे जाते हैं तथा इनके निर्माण का आधार छंदशास्त्रियों के अनुसार १८ पुराण हैं।
४. चार मात्राओं वाले छंद किस जाति के छंद कहलाते हैं?
उत्तर-चार मात्राओं वाले छंद वैदिक जाति के छंद कहलाते हैं।
५. चतुष्कल गण को चौकल क्यों कहते हैं?
उत्तर- चतुष्कल गण में चार-चार कलाएँ (मात्राएँ ) होने के कारण इन्हें चौकल कहते हैं।
६.चतुष्कल गण किन मात्रिक छंदों में मुख्य रूप से उपयोग किये जाते हैं?
उत्तर- चतुष्कल गण आर्या छंद और चौपाई जैसे मात्रिक छंदों में मुख्य रूप से उपयोग किये जाते हैं।
७.मात्रिक दंडक किसे कहते हैं ?
उत्तर- जिन पद्यों के एक-एक पाद में ३२ मात्राओं से अधिक मात्राएँ हों, वे मात्रिक दंडक कहलाते हैं।
८.प्रश्न: राजा जनक के छोटे भाई कुशध्वज कहाँ के राजा थे?
उत्तर: राजा कुशध्वज 'सांकाश्य' नगर के राजा थे।
९.प्रश्न: "सप्रेम हृदय लगावा" पंक्ति का आध्यात्मिक अर्थ क्या है? "
उत्तर: इसका अर्थ है कि जब दो ज्ञानी और प्रेमपूर्ण हृदय मिलते हैं, तो वहाँ मर्यादा और स्नेह का संगम होता है, जैसे जनक जी ने अपने अनुज को गले लगाया।
१०.प्रश्न: इस प्रसंग में 'अनुप' शब्द का प्रयोग किसके सौंदर्य के लिए किया गया है?
उत्तर: 'अनुप' (जिसकी कोई उपमा न हो) शब्द का प्रयोग भगवान श्री राम और उनके भाइयों के अलौकिक सौंदर्य और जनकपुर की शोभा के लिए किया गया है।



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