सज्जनों! आप सभी के आशीर्वाद से मैंने पुनः रामायण लिखने का तुच्छ प्रयत्न किया है जिसे काव्य खण्डों में विभाजित कर यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ,आज के इस छठे प्रसंग में राम-लक्ष्मण का महर्षि विश्वामित्र संग जनकपुरी प्रस्थान,मार्ग में माता गंगे व उनके यशस्वी पूर्वजों का महर्षि द्वारा वर्णन तथा सीता-स्वयंवर व परशुराम जी के स्वयंवर सभा में आकर क्रोध करने के प्रसंग का दर्शन जो कराने का प्रयत्न मैंने किया है।
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अपने इस रामायण के भाग-६ को आधार देने के लिए जो कि बालकाण्ड ही है को आधार देने के लिए मैंने यथोचित दोहा छंद का प्रयोग कर सिय-राम के मिलन का वर्णन करने का भी प्रयत्न किया है।
आशा करता हूँ श्रीराम व सभी देवी-देवता के आशीर्वाद के साथ आप सभी भी मेरे इस रामायण को अपना आशीर्वाद प्रदान करने के लिए अपनी पुनीत प्रतिक्रिया अवश्य प्रदान करेंगे।
दोहा छंद विधान:-
यह एक अर्धसममात्रिक छंद है जो चार चरणों में पूर्ण होता है,यानि यहाँ हम ऐसा कह सकते हैं कि केवल चार चरणों में इस छंद में गूढ़ से गूढ़तम बात कही जा सकती है।
इस छंद की लयबद्धता के लिए कल संयोजन का ध्यान रखना अनिवार्य होता है।
सुन्दरतम कल संयोजन से यह सरस ,सुमधुर व मनोहारी बन जाती है 13-11 के इस विधान में कल संयोजन का ध्यान रखकर छंद विद्यार्थी इस सुन्दरतम छंद का अभ्यास कर सकते हैं।
दोहे का प्रथम व तृतीय चरण विषम तथा द्वितीय व चतुर्थ चरण क्रमशः सम चरण कहलाता है।
विषम चरणों की ग्यारहवीं मात्रा लघु होने से दोहे में सरसता लक्षित होती है।
कल संयोजन से हमारा तात्पर्य मात्राओं का सुन्दरतम विभाजन से है:-
कल परिचय-
कलों के कुल तीन प्रकार हैं-
1- द्विकल, 2- त्रिकल, 3- चौकल
1- द्विकल -
दो मत्राओं से बने शब्द या शब्द भाग को द्विकल कहते हैं।
जैसे- अब, जब, की, पी, सी आदि।
द्विकल= 1+1=2 मात्रा
2- त्रिकल-
तीन मात्राओ के शब्द या शब्द भाग से मिलकर बने शब्द त्रिकल कहलाते हैं.
जैसे- राम, काम, तथा, गया हुई आदि।
त्रिकल= 1+1+1
= 1+2
= 2+1
प्रत्येक योग= कुल 3 मात्रा
3- चौकल-
इसी परकार चार मात्राओ के शब्द या सब्द भाग कोे चौकल कहते है।
जैसे- अजगर, अजीत, असगर, रदीफ़,
चौकल =1+1+1+1
=1+1+2
=2+1+1
=1+2+1
=2+2
प्रत्येक योग =4 मात्रा
दोहे में कल संयोजन-
पहले चरण व तीसरे चरण में
कल संयोजन इस क्रम में होता है....
= 4+4+3+2 =13 मात्रा
या
=3+3+2+3+2=13 मात्रा
द्वितीय चरण व चौथे चरण में
कल लंयोजन इस क्रम में होता है...
= 4+4+3=11 मात्रा
या
=3+3+2+3=11 मात्रा
सिया राम के मिलन का,अद्भुत यह संयोग।
अपलक दोनों कर रहे,भावों का विनियोग।।
प्रसून हर्षित सब हुए,सिया-राम को देख।
नमन लखन द्वय को किये,अपना माथा टेक।।
।।चौपाई।।
सिय स्वयंवर निमंत्रण आया।कौशिक मुनि का मन हर्षाया।।
राम-लखन से मुनिवर बोले।अपनी मन की इच्छा खोले।।विशेष अति सुनो यह स्वयंवर।राम-लखन तुम सुन लो प्रियवर।।
राम-लखन तुम चलके देखो।शिव धनु को तुम भी चल लेखो।।
मिली मार्ग में माते गंगा। पावन जिनकी धवल तरंगा।।
गुरुवर ने फिर उन्हें बताया। कैसे प्रकटी ये समझाया।।
नाम भगीरथ परम तपस्वी।गंग धार बहाए यशस्वी।।
माँ गंगा को शीश नवाकर।रुके मुनि संग मिथिला जाकर।।
गुरु की इच्छा करने पूजन।पुष्प वाटिका चले निरंजन।।
पावन अतिशय यह संयोगा।सिय-राम के मिलन का योगा।।
लता ओट से देख सुकुमारि। होवे हर्षित जनक दुलारी।।
राम सिया को अपलक देखे। लखण सभी को माथा टेके।।
हुआ स्वयंवर नृप सब आए।राम लखण अरु गुरुवर जाए
शंभु चाप को करने भंगा।खींचे-ताने नृप सब अंगा।।
एक -एक कर नृप सब आए। पौरुष अपना वो दिखलाए।।
सबके प्रयत्न व्यर्थ हुए जब।जनक सभा से ये बोले तब।।
धरा हुई क्या वीर विहीना।सब हैं दिखते पौरुष हीना।।
सुने वचन तब लक्ष्मण बोले।कभी न सबको बराबर तौलें।।
अवध भूमि वीरों की नगरी। इच्छा की सब भरती गगरी ।।
एक-बार बस कहकर देखें।राघव के फिर पौरुष लेखें।।
तभी राम फिर आगे आए। फिर शिव धनु को शीश नवाए।।
पलक झपकते धनुष उठाया।देख जनक का मन हर्षाया।।
खींची ज्यों ही धनु की डोरी।चमकी चपला अति घनघोरी।।
महेंद्र पर्वत भी थर्राया। घोर तपस्वी क्रोध जगाया।।
कुपति मुनि स्वयंवर में आए।भंग धनु अवलोक गुस्साए।। कुपित सभा से पूछा होकर। किसे है रोना पूत खोकर।।
तोड़ा किसने मुझे बताओ।नाम बता के जान बचाओ।।
ऐसा सुनकर लक्ष्मण बोले।मुनिवर पर वो ज़ोरों खौले।।
पोष्ट में प्रयोग किये गए कुछ कठिन शब्द:-
निरंजन:-सभी प्रकार के दुर्गुणों से रहित,निर्दोष।
चाप-धनुष।
पौरुष-पुरुषार्थ।
अपलक-बिना पलक झपकाए।
लेखना(प्राचीन शब्द)-देखना
टेकना-झुकाना
विनियोग(विशेषार्थ)-संवाद आदि भेजना
कौशिक-विश्वामित्र
कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न:-
१.सिय स्वयंवर प्रसंग में क्या कुछ सीखने लायक वृतांत है ?
उत्तर-जी हाँ,इस प्रसंग में बहुत कुछ अनुकरणीय है।
उदाहरणार्थ श्रीराम भी राजकुमार होने के बाद भी स्वयंवर के लिए तब तक आगे नहीं आए,जब तक गुरु आज्ञा प्राप्त नहीं हुई।
परशुराम जी के क्रोध करने पर भी श्रीराम ने उनसे विनीत भाव से ही बात की।
२. क्या कंब रामायण किसी अन्य आधार पर लिखी गई है?
उत्तर-नहीं महर्षि कंब ने भी वाल्मीकि रामायण को ही आधार मानकर अपनी रामायण लिखी है।
महर्षि ने केवल अपने रामायण को जन-जन तक दक्षिण में पहुँचाने के लिए ही इसकी रचना की है।
३.क्या कंब रामायण के प्रति लोगोें के बीच में कुछ भ्रांतियां फैली हुई है ?
उत्तर- हाँ, इसके विषय में लोगों में कुछ भ्रांतियां फैली हुई है।कुछ लोगों ने तो मुझे भी यह बताया कि माता सीता रावण की पुत्री हैं,ऐसा कंब ने लिखा है।
पर प्रश्न यह उठता है कि जब "कंब रामायण" महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण को आधार मानकर लिखी गयी है,तो यह भ्रांति आधार विहीन ही हुई।
४.पंचचामर छंद की परिभाषा तथा विधान बताएं ?
उत्तर- पंचचामर छंद एक वार्णिक छंद है, जिसमें कुल १६ वर्ण होते हैं। इस छंद का विधान लघु गुरु संयोजन×८=१६
वर्ण तथा मापनी इस प्रकार हैं:-
१२ १२ १२ १२ १२ १२ १२ १२
५.डमरू घनाक्षरी छंद की परिभाषा तथा विधान बताएं ?
उत्तर-यह भी एक वार्णिक छंद है जिसमें कुल ३२ वर्ण होते हैं।
डमरू की निनाद डमक डम ,डमक डम की भांति श्रुति में प्रतीत होने वाला यह छंद कवियों द्वारा अति पसंद किया जाता है।
चार पदों वाले इस छंद की मापनी इस प्रकार हैं
८-८-८-८ वर्ण प्रति चरण तुकांत तथा सभी वर्ण लघु होंगे।
६.चुलियाला छंद की परिभाषा तथा विधान बताएं ?
उत्तर- इस मात्रिक छंद में दोहे के विषम चरणों को यथावत(१३ मात्रा) रखकर सम चरणों के पदांत यानि (११ मात्रा) के बाद १२११ जोड़कर लिखा जाता है।
७.छंद विज्ञों के अनुसार चुलियाला छंद का एक और क्या नाम है तथा इसके कितने प्रकार प्रसिद्ध हैं :-
उत्तर-छंद विज्ञों के अनुसार चुलियाला छंद का एक और नाम चूड़ामणि छंद है तथा विद्वानों के अनुसार इसके आठ प्रकार प्रसिद्ध है,जो दोहे के विषम चरणों के ११ मात्रा के बाद आने वाले पचकल मात्राओं में कुछ बदलाव से निर्मित होते हैं।
८. ताण्डव छंद की विधान तथा परिभाषा बताएं ?
उत्तर-यह एक आदित्य जाति का छंद है,जिसमें चार चरण तथा दो-दो या चारों चरण समतुकांत होने के साथ-साथ पदांत १२१ तथा आरंभ लघु मात्रा से अनिवार्य होता है।
९. आदित्य जाति के छंद से क्या आशय है ?
उत्तर- आदित्य जाति के छंद से आशय ऐसे छंदों से है जिसकी मात्राभार १२ मात्रा प्रतिपद होती है।
टिप्पणियाँ
जिसने भी वाल्मीकि रामायण, जिसे अध्यात्म रामायण भी कहा जाता है और तुलसीदास कृत श्रीरामचरितमानस के अमृत का गूढ्ता से रसास्वादन किया वह जीव उच्च संस्कारों से परिपूर्ण होगा।