सज्जनों! आप सभी के आशीर्वाद से मैंने पुनः रामायण लिखने का तुच्छ प्रयत्न किया है जिसे काव्य खण्डों में विभाजित कर यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ,आज के इस छठे प्रसंग में राम-लक्ष्मण का महर्षि विश्वामित्र संग जनकपुरी प्रस्थान,मार्ग में माता गंगे व उनके यशस्वी पूर्वजों का महर्षि द्वारा वर्णन तथा सीता-स्वयंवर व परशुराम जी के स्वयंवर सभा में आकर क्रोध करने के प्रसंग का दर्शन जो कराने का प्रयत्न मैंने किया है। श्रीरामायणामृतम् भाग-५ अपने इस रामायण के भाग-६ को आधार देने के लिए जो कि बालकाण्ड ही है को आधार देने के लिए मैंने यथोचित दोहा छंद का प्रयोग कर सिय-राम के मिलन का वर्णन करने का भी प्रयत्न किया है। आशा करता हूँ श्रीराम व सभी देवी-देवता के आशीर्वाद के साथ आप सभी भी मेरे इस रामायण को अपना आशीर्वाद प्रदान करने के लिए अपनी पुनीत प्रतिक्रिया अवश्य प्रदान करेंगे। दोहा छंद विधान:- यह एक अर्धसममात्रिक छंद है जो चार चरणों में पूर्ण होता है,यानि यहाँ हम ऐसा कह सकते हैं कि केवल चार चरणों में इस छंद में गूढ़ से गूढ़तम बात कही जा सकती है। इस छंद की लयबद्धता के लिए कल संयोजन का ध्यान रखना अ...
आदरणीय बासुदेव अग्रवाल'नमन' जी का पुनः हृदय तल से अग्रिम आभार अनुष्टुप छंद के विधान मार्गदर्शन हेतु,विशेषतः अनुष्टुप छंद संस्कृत में प्रचलित है,पर हिन्दी में इस छंद में लेखन एक सराहनीय प्रयास है,आइए मिलकर आदरणीय के मार्गदर्शनानुसार इसका विधान अवलोकन करें :- अनुष्टुप छंद एक अर्धसमवृत्त छंद।इस द्विपदी छंद के पद में दो चरण और प्रत्येक चरण में आठ वर्ण होते हैं।पहले चार वर्ण को किसी भी मात्रा में लिखा जा सकता है,परन्तु पाँचवाँ लघु और छठा वर्ण सदैव गुरु होता है।विषम चरणों(१,३) में सातवाँ वर्ण गुरु और सम चरणों (२,४)में लघु होता है।संस्कृत में आठवें वर्ण को लघु या गुरु कुछ भी रखा जा सकता है,संस्कृत में छंद के अंतिम वर्ण लघु होते हुए भी दीर्घ उच्चरित होते हैं जबकि हिन्दी में आठवाँ वर्ण सदैव दीर्घ ही होता है। जनवरी पधारी जो,संग लेकर ठंड है। धूम यहाँ मचाई ये ,बढ़ गया घमंड है।। स्वेटर बंद बैगों से,बाहर निकले सभी। पजामे क्यों रहे बंदी,झट वे निकले तभी।। कहीं मार न खा जाऊँ,मन विचार ज्यों जगा। दमदार लड़ाई थी,देख ये ठंड भी भगा। तभी फरवरी आई,संग बसंत को लिये। फाल्गुन मार्च संगी ह...