आदरणीय बासुदेव अग्रवाल'नमन' जी का पुनः हृदय तल से अग्रिम आभार अनुष्टुप छंद के विधान मार्गदर्शन हेतु,विशेषतः अनुष्टुप छंद संस्कृत में प्रचलित है,पर हिन्दी में इस छंद में लेखन एक सराहनीय प्रयास है,आइए मिलकर आदरणीय के मार्गदर्शनानुसार इसका विधान अवलोकन करें :-
अनुष्टुप छंद एक अर्धसमवृत्त छंद।इस द्विपदी छंद के पद में दो चरण और प्रत्येक चरण में आठ वर्ण होते हैं।पहले चार वर्ण को किसी भी मात्रा में लिखा जा सकता है,परन्तु पाँचवाँ लघु और छठा वर्ण सदैव गुरु होता है।विषम चरणों(१,३) में सातवाँ वर्ण गुरु और सम चरणों (२,४)में लघु होता है।संस्कृत में आठवें वर्ण को लघु या गुरु कुछ भी रखा जा सकता है,संस्कृत में छंद के अंतिम वर्ण लघु होते हुए भी दीर्घ उच्चरित होते हैं जबकि हिन्दी में आठवाँ वर्ण सदैव दीर्घ ही होता है।
जनवरी पधारी जो,संग लेकर ठंड है।
धूम यहाँ मचाई ये ,बढ़ गया घमंड है।।
स्वेटर बंद बैगों से,बाहर निकले सभी।
पजामे क्यों रहे बंदी,झट वे निकले तभी।।
कहीं मार न खा जाऊँ,मन विचार ज्यों जगा।
दमदार लड़ाई थी,देख ये ठंड भी भगा।
तभी फरवरी आई,संग बसंत को लिये।
फाल्गुन मार्च संगी हो,रंगीन सबको किये।।
अप्रैल गरमाया है,शिथिल जो पड़े हुए।
मई आते डरी पृथ्वी,ताप को सहते हुए।।
जून प्रचंड लू से तो,सहमती धरा सदा।
जुलाई भींग हर्षाई,मौज चली धरा मना।।
अगस्त भींग ज़ोरों भी,राष्ट्रगीत बजा रहा।
गुरु को शीश अभी जाके,सितम्बर झुका ज़रा।।
निष्कर्ष:- इस सप्तश्लोकी अनुष्टुप छंद में जनवरी में ठंड के प्रचंड तेवर का वर्णन करने के साथ-साथ जनवरी से लेकर सितंबर माह को कहीं डराने,कहीं धमकाने,कहीं अनुरोध तो कहीं आदेश देने का प्रयत्न किया है,यदि पसंद आए तो आपका प्यार,दुलार,आशीर्वाद अवश्य चाहुँगा।
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टिप्पणियाँ
कविता की एक विशेष बात यह है कि इसमें जनवरी के बारे में बात की गई है, जो साल का पहला महीना है।
कविता में उपयोग किए गए शब्दों और मुहावरों का चयन भी बहुत अच्छा है, जो इसकी भावनात्मकता और गहराई को बढ़ाता है। कविता की भाषा सरल और स्पष्ट है, जिससे पाठकों को इसका अर्थ समझने में आसानी होती है।
अंत में, मैं कहना चाहूंगा कि यह कविता वास्तव में एक सुंदर और भावनात्मक रचना है जो पाठकों को जनवरी की सुंदरता और महत्व का अनुभव करने का अवसर प्रदान करती है।"
उत्तम बात इसमें यही है कि व्यक्ति ही वह जीव है जो अपनी असफलताओं से सीख लेकर सफलताओं के स्वर्णिम सोपान पर आरूढ़ होता है,भूतपूर्व या पुरातन त्रुटियाँ या गलतियाँ स्मृत नहीं विस्मृत करने से पूर्व उनसे सीख लेने के लिए होती हैं या की जाती हैं।
3 जनवरी 2025 को 9:31 am बजे