सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

चामर छंद लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अनंग रूप कृष्ण का मयूर पंख सोहता..वेणु तान मोहता

आप सभी सुधीजनों के समक्ष श्रीकृष्ण का मनोहारी वर्णन पञ्चचामर छंद में सादर समर्पित है,यदि पसंद आए तो आपका प्यार,दुलार आशीर्वाद की अभिलाषा है। पञ्चचामर छंद एक वार्णिक छंद है ,जिसे छंदविज्ञों के अनुसार 'नाराच' छंद के नाम से जाना जाता है ।इस छंद में प्रतिपद १६ वर्ण होते हैं।इसमें ८,८वर्णों पर यति का विधान है।चार पद या दो-दो पद समतुकांत रखा जाता है। छंद की मापनी:-१२ १२ १२ १२ १२ १२ १२ १२  प्रस्तुत है पञ्चचामर छंद में श्रीकृष्ण जी का मनोहारी वर्णन प्रयत्न:-              अनंग रूप कृष्ण का मयूर पंख सोहता।     निकुंज कुंज ग्वाल बाल वेणु तान मोहता।।      सुधा रसाल नैत्र द्वय मंत्रमुग्ध मोहना।     ललाट लेप पीत वर्ण श्याम रूप सोहना।।     सुगंध दिव्य पुष्प माल कंठ क्षेत्र साजता।     मलंग रूप ईश का हृदय अनंत राजता।।   कठिन शब्दों के अर्थ:- अनंग-कामदेव सोहता-सुंदर लगना निकुंज- उपवन कुंज-वन वेणु-बाँसुरी सुधा-अमृत रसाल-आम(फल),सुमधुर मोहना-मोह लेने वाला सोहना-सुंदर लगने वाला साजना- अच्छा लगना Share Whatsapp...

ठंड मार शीत बाण हाड़ को कँपा रही..स्वनाम जो जपा रही

  चामर छंद जो कि पंद्रह वर्णों का एक वार्णिक छंद है,इसमें ठंड,शीत विषयक छोटी-सी सृजन पुनः आप सबों के समक्ष कठिन शब्दों के अर्थ सहित सादर प्रस्तुत है,आशा करता हूँ यह छंदमय प्रयत्न आपको अवश्यमय पसंद आएगा और गुनगुनाने को विवश कर देगा।यदि आपको तनिक भी ऐसी अनुभूति होती है,तो आपका प्यार,दुलार,आशीर्वाद अवश्यमेव चाहुँगा। चामर छंद का विधान निम्नवत है :-           रगण जगण रगण जगण रगण              २१  २१  २१ २१ २१ २१ २१२                  ठंड मार शीत बाण हाड़ को कँपा रही।   पाप क्या किया बता स्वनाम जो जपा रही ।।    प्रीत मीत मानके न वैर भावना रखा।    ठंड दंड ताड़ना अमानना नहीं लखा।।   रोग भोग भी लिया न मौन भंग ही किया।    वेग से प्रवेग से समीर क्यों बहा दिया।।   प्राण घ्राण सर्प सा नहीं सुनो करो कभी।   क्रोध का प्रमाण शोध ना करा मुझे अभी।।  रार वार जो ठना विकल्प कल्प ही नहींं।    ऊन चीर ओढ़के डरा नहींं डटा यहीं...