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संस्कृति अपनी ठगती है...अच्छी दूजी लगती है

आदरणीय बासुदेव अग्रवाल'नमन' जी का पुनः इस मनोरम छंद विधान के लिए अग्रिम आभार।यह वही छंद विधान है जिसमें प्रखर कवि 'जयशंकर प्रसाद ' ने पूरा आँसू काव्य खंड ही रच दिया था,आइए आज इस मर्मस्पर्शी छंद विधान को हम सब भी जानें,समझें। आँसू छंद का विधान :-यह एक समपद मात्रिक छंद है,जिसमें प्रति पद २८ मात्रा,१४-१४ के यति खंडों में विभक्त होकर रहता है।इसमें दो-दो चरणों में समतुकांतता रखी जाती है। मात्रा बाँट के लिए प्रति चरण की प्रथम दो मात्राएँ सदैव द्विकल के रूप में रहती है जिसमें ११ या २ दोनों रूप मान्य हैं।बची हुई १२ मात्रा में चौकल अठकल की निम्न संभावनाओं में से कोई भी प्रयोग में लाई जा सकती है,आदरणीय के मार्गदर्शनानुसार:- तीन चौकल चौकल+ अठकल अठकल+चौकल इस छंद पर सृजित मेरे प्रयत्न सादर समर्पित हैं :-               संस्कृति अपनी ठगती है। अच्छी दूजी लगती है।।१ सीख चुके हैं खुदगर्जी। सब बन पूरे अंग्रेज़ी।।२ अपनी ना मिट्टी भाए। देशी कपड़ा लज्जाए।।३ बन विदेशी यहाँ रहना। वसन विदेशी सम गहना।।४ माँ संबोधन व्यर्थ लगे। कहते डैडी ...
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कर्महीन वह होता हरदम..भाग्य भरोसे बस बैठा

आदरणीय बासुदेव अग्रवाल 'नमन' जी का ३२ मात्रिक छंद विधान को हम नवांकुरों से साझा करने के लिए हृदय तल से अग्रिम आभार।आदरणीय के मार्गदर्शनानुसार छंद विधान व नीचे उस पर मेरे द्वारा सृजित रचना आप सभी साहित्य प्रेमियों के लिए सादर प्रस्तुत है:- चौपाई के द्विगुणित रूप वाला यह चतुष्पदी(चार पदों वाला)सममात्रिक छंद में १६ मात्राओं के चरणों का विधान चौपाई वाला ही होता है। यह छंद राधेश्यामी छंद से अलग होता है क्योंकि राधेश्यामी छंद के १६ मात्रिक चरण का प्रारम्भ त्रिकल से नहीं हो सकता,उसमें प्रारम्भ में द्विकल होना आवश्यक है।जबकि ३२ मात्रिक छंद में ऐसी बाध्यता नहीं है। छंद विधान पर प्रस्तुत त्वरित सृजन सादर प्रस्तुत है :- नवल वर्ष का कर लें स्वागत,पर सुनें पुराना मत भूलें। जो भी गलती तभी हुई थी,सुधार करें अरु सफल हो लें।। आज शिखर तक जो भी पहुँचे,सीखे वो बीती बातों से। जो कर्म पथिक ना अभी थके,ऊर्जा वो पाए रातों से।। सुनें वर्ष तो आए-जाए,प्रश्न यही बस क्या हम जाने। उत्सव को बस वर्ष नहीं है,उत्तम हम गलती पहिचानें।। बार-बार गलती दुहराना,सुनें ना होती अक्लमंदी। सुधार यदि हम गलती को लें,तब नहीं...

जन्म लिया था एक सितारा माह सितम्बर में

  आज प्रचलित कवि,ग़ज़लकार,साहित्यकार दुष्यंत कुमार जी की पुण्यतिथि है,उनके जीवन परिचय व उनकी रचनाओं को सम्मेलित कर मैंने एक अनूठा प्रयोग किया है,जो विष्णुपद छंद विधान में है,इस प्रयास को आपका व उन महान व्यक्तित्व का प्यार,दुलार,आशीर्वाद मिले ऐसी मंगलकामना है। प्रस्तुत है विधान सहित विष्णुपद छंद में मेरे भावपूर्ण श्रद्धासुमन:- विष्णुपद छंद विधान-आदरणीय बिजेंद्र सिंह'सरल' जी के मार्गदर्शनानुसार:-१६-१० मात्राओं पर यति,दो-दो चरण समतुकांत तथा चरणांत गुरु अनिवार्य। विशेष:- १६ मात्रा वाले भाग कौ चौपाई छंद के १६ मात्राओं जैसा रखना है और १० मात्राओं को दोहे के चरणांत २१ में से १ घटाकर यानि २ पर अंत करना है। सृजन प्रस्तुत है:- जन्म लिया था एक सितारा,माह सितम्बर में। धूम मची राजपुर ग्राम में,जगमग अंबर में।। सन् इकतीस तिथि सत्ताईस,दुष्यंत पधारे। ग़ज़लों का फिर मान बढ़ाए,साहित्यिक तारे।। भगवत सहाय नाम पिता का,रामकिशोरी माँ। उम्र चवालीस जीवन अवधि,जाना सकल जहाँ।। साये में वो धूप लगाकर,पर्वत पिघलाए। करने वो गगन में सूराख,पत्थर उछलाए।। फटेहाल देख एक भारत,सुने क्यों निरुत्तर। बोला वह अभिमान देश ...

उमंगों भरा ही अभी साल हो

गीत विधान:- गीत छंदों पर आधारित एक प्यारी विधा है।गीत का शाब्दिक अर्थ है गाने वाली।इस "गीत शब्द " में समाहित अर्थ है गाने के पश्चात मन तार को झंकृत करनेवाली।गीत के विधान को यदि समझा जाय तो गीत छंदों पर आधारित वो विधा है जिसमें गेयता का होना अनिवार्य है,लयबद्धता होना अनिवार्य है।ये छंद मात्रिक या वार्णिक कोई भी हो सकते हैं।सामान्यतः हमने लोकगीतों के बारे में सुना है।लोकगीत अर्थात् क्षेत्र विशेष में प्रचलित भाषा के आधार पर प्रचलित गीत।गीत पारंपरिक व फिल्मी गीत हो सकते हैं। विधान-गीत के मुख्यतः दो भाग होते हैं:-मुखड़ा और अंतरा।मुखड़ा एक, दो तीन या चार पंक्तियों का होता है।मुखड़े की एक पंक्ति टेक(ठहराव)के रूप में प्रयुक्त होती है जो अंतरे की अंतिम पंक्ति के साथ मिलकर मुखड़े से जोड़ देती है।प्रायः यह टेक मुखड़े की पहली या अंतिम पंक्ति होती है। अंतरा तीन या उससे अधिक पंक्तियों का छंद होता है।यह छंद स्वैच्छिक होता है यानी गायक के द्वारा स्वयं ग्रहण किया हुआ।गीत के मुखड़े या छंद समान हों ये आवश्यक नहीं। अलग- अलग पंक्तियों के आधार छंद अलग अलग हो सकते हैं पर लय के अनुसार उनका मिलान आव...

जीवन क्या है एक छलावा

मधुशाला छंद में मेरी छोटी-सी कोशिश प्रस्तुत है। इस छंद के विधान की यदि बात करूँ तो इसमें १६-१४ की मात्रा पर यति, दो-दो चरण तुकांत तथा तीसरा चरण अतुकांत होता है,प्रस्तुत है इस छंद में मेरा एक प्रयत्न:- जीवन क्या है एक छलावा, सब जिसमें ही छल जाते। माया के बंधन में फँसकर,कागज़ सम सब गल जाते।। मान यहाँ जो भी पाता है,होता बदनाम वही भी, नहीं सफल वो हो पाते जो,यश-अपयश में भरमाते।।१  नहीं कभी जो फल की सोचें,कर्म यहाँ बस करते हैं।   असाध्य लक्ष्य उनके न होते,वही सफलता वरते हैं।   विकल्प पथिक अगर तुम चाहो,अटल संकल्प रखना है।   बस कहने से कुछ ना होगा,हामी ही जो भरते हैं।२ Share Whatsapp  , facebook , Instagram , Twitter , Linkedin Telegram , Youtube , Pinterest Quora , Quora own group #राधेश्यामी छंद#पंचचामर छंद#विधाता छंद#जयकरी छंद#चंडिका छंद#मदलेखा छंद#मनमोहन छंद#चामर छंद#सुमेरू छंद#श्येनिका छंद#उपचित्रा छंद#चौपाई छंद#भारत-भारती#मैथिली शरण गुप्त Kavyasamidha Flipkart Medium