आज प्रचलित कवि,ग़ज़लकार,साहित्यकार दुष्यंत कुमार जी की पुण्यतिथि है,उनके जीवन परिचय व उनकी रचनाओं को सम्मेलित कर मैंने एक अनूठा प्रयोग किया है,जो विष्णुपद छंद विधान में है,इस प्रयास को आपका व उन महान व्यक्तित्व का प्यार,दुलार,आशीर्वाद मिले ऐसी मंगलकामना है।
प्रस्तुत है विधान सहित विष्णुपद छंद में मेरे भावपूर्ण श्रद्धासुमन:-
विष्णुपद छंद विधान-आदरणीय बिजेंद्र सिंह'सरल' जी के मार्गदर्शनानुसार:-१६-१० मात्राओं पर यति,दो-दो चरण समतुकांत तथा चरणांत गुरु अनिवार्य।
विशेष:- १६ मात्रा वाले भाग कौ चौपाई छंद के १६ मात्राओं जैसा रखना है और १० मात्राओं को दोहे के चरणांत २१ में से १ घटाकर यानि २ पर अंत करना है।
सृजन प्रस्तुत है:-
जन्म लिया था एक सितारा,माह सितम्बर में।
धूम मची राजपुर ग्राम में,जगमग अंबर में।।
सन् इकतीस तिथि सत्ताईस,दुष्यंत पधारे।
ग़ज़लों का फिर मान बढ़ाए,साहित्यिक तारे।।
भगवत सहाय नाम पिता का,रामकिशोरी माँ।
उम्र चवालीस जीवन अवधि,जाना सकल जहाँ।।
साये में वो धूप लगाकर,पर्वत पिघलाए।
करने वो गगन में सूराख,पत्थर उछलाए।।
फटेहाल देख एक भारत,सुने क्यों निरुत्तर।
बोला वह अभिमान देश पे,उसके ये उत्तर।।
तीस दिसंबर सन् पचहत्तर , तारक मौन हुआ।
कृतियाँ उसकी अमर अभी भी,जब वो गौण हुआ।।
भारत भूषण पाठक'देवांश'
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