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ठंड मार शीत बाण हाड़ को कँपा रही..स्वनाम जो जपा रही

  चामर छंद जो कि पंद्रह वर्णों का एक वार्णिक छंद है,इसमें ठंड,शीत विषयक छोटी-सी सृजन पुनः आप सबों के समक्ष कठिन शब्दों के अर्थ सहित सादर प्रस्तुत है,आशा करता हूँ यह छंदमय प्रयत्न आपको अवश्यमय पसंद आएगा और गुनगुनाने को विवश कर देगा।यदि आपको तनिक भी ऐसी अनुभूति होती है,तो आपका प्यार,दुलार,आशीर्वाद अवश्यमेव चाहुँगा। चामर छंद का विधान निम्नवत है :-           रगण जगण रगण जगण रगण              २१  २१  २१ २१ २१ २१ २१२                  ठंड मार शीत बाण हाड़ को कँपा रही।   पाप क्या किया बता स्वनाम जो जपा रही ।।    प्रीत मीत मानके न वैर भावना रखा।    ठंड दंड ताड़ना अमानना नहीं लखा।।   रोग भोग भी लिया न मौन भंग ही किया।    वेग से प्रवेग से समीर क्यों बहा दिया।।   प्राण घ्राण सर्प सा नहीं सुनो करो कभी।   क्रोध का प्रमाण शोध ना करा मुझे अभी।।  रार वार जो ठना विकल्प कल्प ही नहींं।    ऊन चीर ओढ़के डरा नहींं डटा यहीं...

जन्म लिया था एक सितारा माह सितम्बर में

  आज प्रचलित कवि,ग़ज़लकार,साहित्यकार दुष्यंत कुमार जी की पुण्यतिथि है,उनके जीवन परिचय व उनकी रचनाओं को सम्मेलित कर मैंने एक अनूठा प्रयोग किया है,जो विष्णुपद छंद विधान में है,इस प्रयास को आपका व उन महान व्यक्तित्व का प्यार,दुलार,आशीर्वाद मिले ऐसी मंगलकामना है।

प्रस्तुत है विधान सहित विष्णुपद छंद में मेरे भावपूर्ण श्रद्धासुमन:-

विष्णुपद छंद विधान-आदरणीय बिजेंद्र सिंह'सरल' जी के मार्गदर्शनानुसार:-१६-१० मात्राओं पर यति,दो-दो चरण समतुकांत तथा चरणांत गुरु अनिवार्य।

विशेष:- १६ मात्रा वाले भाग कौ चौपाई छंद के १६ मात्राओं जैसा रखना है और १० मात्राओं को दोहे के चरणांत २१ में से १ घटाकर यानि २ पर अंत करना है।

सृजन प्रस्तुत है:-

Janm liya thha ek sitara maah sitambar main


जन्म लिया था एक सितारा,माह सितम्बर में।

धूम मची राजपुर ग्राम में,जगमग अंबर में।।

सन् इकतीस तिथि सत्ताईस,दुष्यंत पधारे।

ग़ज़लों का फिर मान बढ़ाए,साहित्यिक तारे।।

भगवत सहाय नाम पिता का,रामकिशोरी माँ।

उम्र चवालीस जीवन अवधि,जाना सकल जहाँ।।

साये में वो धूप लगाकर,पर्वत पिघलाए।

करने वो गगन में सूराख,पत्थर उछलाए।।

फटेहाल देख एक भारत,सुने क्यों निरुत्तर।

बोला वह अभिमान देश पे,उसके ये उत्तर।।

तीस दिसंबर सन् पचहत्तर , तारक मौन हुआ।

कृतियाँ उसकी अमर अभी भी,जब वो गौण हुआ।।

भारत भूषण पाठक'देवांश'

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