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जनवरी, 2025 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ठंड मार शीत बाण हाड़ को कँपा रही..स्वनाम जो जपा रही

  चामर छंद जो कि पंद्रह वर्णों का एक वार्णिक छंद है,इसमें ठंड,शीत विषयक छोटी-सी सृजन पुनः आप सबों के समक्ष कठिन शब्दों के अर्थ सहित सादर प्रस्तुत है,आशा करता हूँ यह छंदमय प्रयत्न आपको अवश्यमय पसंद आएगा और गुनगुनाने को विवश कर देगा।यदि आपको तनिक भी ऐसी अनुभूति होती है,तो आपका प्यार,दुलार,आशीर्वाद अवश्यमेव चाहुँगा। चामर छंद का विधान निम्नवत है :-           रगण जगण रगण जगण रगण              २१  २१  २१ २१ २१ २१ २१२                  ठंड मार शीत बाण हाड़ को कँपा रही।   पाप क्या किया बता स्वनाम जो जपा रही ।।    प्रीत मीत मानके न वैर भावना रखा।    ठंड दंड ताड़ना अमानना नहीं लखा।।   रोग भोग भी लिया न मौन भंग ही किया।    वेग से प्रवेग से समीर क्यों बहा दिया।।   प्राण घ्राण सर्प सा नहीं सुनो करो कभी।   क्रोध का प्रमाण शोध ना करा मुझे अभी।।  रार वार जो ठना विकल्प कल्प ही नहींं।    ऊन चीर ओढ़के डरा नहींं डटा यहीं...

ठंड मार शीत बाण हाड़ को कँपा रही..स्वनाम जो जपा रही

  चामर छंद जो कि पंद्रह वर्णों का एक वार्णिक छंद है,इसमें ठंड,शीत विषयक छोटी-सी सृजन पुनः आप सबों के समक्ष कठिन शब्दों के अर्थ सहित सादर प्रस्तुत है,आशा करता हूँ यह छंदमय प्रयत्न आपको अवश्यमय पसंद आएगा और गुनगुनाने को विवश कर देगा।यदि आपको तनिक भी ऐसी अनुभूति होती है,तो आपका प्यार,दुलार,आशीर्वाद अवश्यमेव चाहुँगा। चामर छंद का विधान निम्नवत है :-           रगण जगण रगण जगण रगण              २१  २१  २१ २१ २१ २१ २१२                  ठंड मार शीत बाण हाड़ को कँपा रही।   पाप क्या किया बता स्वनाम जो जपा रही ।।    प्रीत मीत मानके न वैर भावना रखा।    ठंड दंड ताड़ना अमानना नहीं लखा।।   रोग भोग भी लिया न मौन भंग ही किया।    वेग से प्रवेग से समीर क्यों बहा दिया।।   प्राण घ्राण सर्प सा नहीं सुनो करो कभी।   क्रोध का प्रमाण शोध ना करा मुझे अभी।।  रार वार जो ठना विकल्प कल्प ही नहींं।    ऊन चीर ओढ़के डरा नहींं डटा यहीं...

जनवरी पधारी जो संग लेकर ठंड है..धूम खूब मचाई ये बढ़ गया घमंड है

 आदरणीय बासुदेव अग्रवाल'नमन' जी का पुनः हृदय तल से अग्रिम आभार अनुष्टुप छंद के विधान मार्गदर्शन हेतु,विशेषतः अनुष्टुप छंद संस्कृत में प्रचलित है,पर हिन्दी में इस छंद में लेखन एक सराहनीय प्रयास है,आइए मिलकर आदरणीय के मार्गदर्शनानुसार इसका विधान अवलोकन करें :- अनुष्टुप छंद एक अर्धसमवृत्त छंद।इस द्विपदी छंद के पद में दो चरण और प्रत्येक चरण में आठ वर्ण होते हैं।पहले चार वर्ण को किसी भी मात्रा में लिखा जा सकता है,परन्तु पाँचवाँ लघु और छठा वर्ण सदैव गुरु होता है।विषम चरणों(१,३) में सातवाँ वर्ण गुरु और सम चरणों (२,४)में लघु होता है।संस्कृत में आठवें वर्ण को लघु या गुरु कुछ भी रखा जा सकता है,संस्कृत में छंद के अंतिम वर्ण लघु होते हुए भी दीर्घ उच्चरित होते हैं जबकि हिन्दी में आठवाँ वर्ण सदैव दीर्घ ही होता है।   जनवरी पधारी जो,संग लेकर ठंड है। धूम यहाँ मचाई ये ,बढ़ गया घमंड है।। स्वेटर बंद बैगों से,बाहर निकले सभी। पजामे क्यों रहे बंदी,झट वे निकले तभी।। कहीं मार न खा जाऊँ,मन विचार ज्यों जगा। दमदार लड़ाई थी,देख ये ठंड भी भगा।  तभी फरवरी आई,संग बसंत को लिये।  फाल्गुन मार्च संगी ह...

संस्कृति अपनी ठगती है...अच्छी दूजी लगती है

आदरणीय बासुदेव अग्रवाल'नमन' जी का पुनः इस मनोरम छंद विधान के लिए अग्रिम आभार।यह वही छंद विधान है जिसमें प्रखर कवि 'जयशंकर प्रसाद ' ने पूरा आँसू काव्य खंड ही रच दिया था,आइए आज इस मर्मस्पर्शी छंद विधान को हम सब भी जानें,समझें। आँसू छंद का विधान :-यह एक समपद मात्रिक छंद है,जिसमें प्रति पद २८ मात्रा,१४-१४ के यति खंडों में विभक्त होकर रहता है।इसमें दो-दो चरणों में समतुकांतता रखी जाती है। मात्रा बाँट के लिए प्रति चरण की प्रथम दो मात्राएँ सदैव द्विकल के रूप में रहती है जिसमें ११ या २ दोनों रूप मान्य हैं।बची हुई १२ मात्रा में चौकल अठकल की निम्न संभावनाओं में से कोई भी प्रयोग में लाई जा सकती है,आदरणीय के मार्गदर्शनानुसार:- तीन चौकल चौकल+ अठकल अठकल+चौकल इस छंद पर सृजित मेरे प्रयत्न सादर समर्पित हैं :-               संस्कृति अपनी ठगती है। अच्छी दूजी लगती है।।१ सीख चुके हैं खुदगर्जी। सब बन पूरे अंग्रेज़ी।।२ अपनी ना मिट्टी भाए। देशी कपड़ा लज्जाए।।३ बन विदेशी यहाँ रहना। वसन विदेशी सम गहना।।४ माँ संबोधन व्यर्थ लगे। कहते डैडी ...